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________________ २०८ जैनदर्शन में समत्वयोग की साधना शारीरिक और मानसिक आवेगों तथा पारिवारिक और व्यवसायिक दायित्वों से मुक्त होकर सामायिक की साधना कर सकता है। व्यक्ति को उचित और अनुचित समय का विचार करना भी आवश्यक है। अयोग्य समय में यदि वह सामायिक करता है, तो मन शान्त या एकाग्र नहीं हो सकता है। संकल्प-विकल्प का प्रवाह मस्तिष्क में चलता रहता है, तो ऐसी सामायिक से कोई लाभ नहीं होता। अतः योग्य समय का विचार करके जो सामायिक की जाती है, वह सामायिक निर्विघ्न तथा शुद्ध होती है। कार्तिकेयानुप्रेक्षा में भी बताया गया है कि जहाँ चित्त में कोई क्षोभ के कारण उत्पन्न नहीं होते हों, वहाँ सामायिक करना उचित है।३५ यदि परिवार में कोई सदस्य बीमार हो और उसकी सेवा का समय हो, उस समय यदि सेवा को छोड़कर सामायिक करने बैठते हैं, तो यह भी उचित नहीं कहा जा सकता। इससे दूसरों पर बुरी छाप पड़ती है। दशवैकालिकसूत्र में भी कहा गया है - 'काले कालं समायरे' अर्थात् जिस कार्य को जिस समय करना हो, उसी समय वह कार्य करना उचित होता है। भगवान महावीर ने भी कहा है कि यदि बीमार साधु की सेवा शुश्रूषा को छोड़कर दूसरे साधु अन्य कार्य में रत बने रहे, तो प्रायश्चित आता है। बीमारी में पूर्ण रूप से सार सम्भाल करना आवश्यक है। इस प्रकार सामायिक के लिये योग्यकाल का निर्णय करना ही कालविशुद्धि है। २. क्षेत्रविशुद्धि - क्षेत्र से मतलब उस स्थान से है, जहाँ साधक सामायिक करने के लिए बैठता है। वह स्थान योग्य हो - पूर्णतः शुद्ध पवित्र हो। जिस स्थान पर बैठने से चित्त में विकत भाव उठते हों, चित्त चंचल बनता हो और जिस स्थान पर स्त्री-पुरुष या पशु आदि का आवागमन अधिक होता हो, विषय विकार उत्पन्न करनेवाले शब्द कान में पड़ते हों; इधर-उधर दृष्टि करने से मन विचलित होता हो अथवा क्लेश उत्पन्न होने की सम्भावना हो - ऐसे स्थानों पर बैठकर सामायिक करना उचित नहीं है। आत्मा को उच्च दशा में पहुँचाने के लिये और अर्न्तहृदय ३५ 'जत्थण कलयलसद्दो, बहुजणसंघट्टणं ण जत्थत्थि । जत्थ ण दंसादीया, एस पसत्थो हवे दोसो ।। ३५३ ।।' -कार्तिकेयानुप्रेक्षा । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001732
Book TitleJain Darshan me Samatvayog
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyvandanashreeji
PublisherPrem Sulochan Prakashan Peddtumbalam AP
Publication Year2007
Total Pages434
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Religion, Yoga, & Principle
File Size7 MB
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