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समत्वयोग : साधक, साध्य और साधना
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गोम्मटसार में सामायिक का अर्थ इस प्रकार से मिलता है : 'सम+आय' - सम का अर्थ है आत्मभाव (एकीभाव) और आय का अर्थ है गमन। जिसके द्वारा बाह्य प्रवृत्तियों से अर्थात् पर-परिणति से निवृत्त होकर आत्म-परिणति (अन्तर्मुखता) की ओर जाया जाता है, वही सामायिक है। सामायिक कोई रूढ़िवादी क्रिया नहीं, अपितु समता के समुद्र में अवगाहन करना है।६८ यही आत्मानुभूति की प्रक्रिया है। राग-द्वेष एवं विषय विकार रूपी कालुष्य को आत्मा से अलग कर उसे विशुद्ध बनाना ही सामायिक या समत्वयोग की साधना है। संक्षिप्त रूप में सामायिक एक ओर चित्तवृत्ति का समत्व है, तो दूसरी ओर पापों से रहित होना है। अशुभ से निवृत्त होकर शुभ में प्रवेश पाना और शुभ से शुद्ध आत्मतत्त्व की उपलब्धि कर समभाव में स्थिर होना ही सामायिक है।६६
सामायिक का शब्दार्थ
सामायिक शब्द का अर्थ बड़ा ही विलक्षण है। सामायिक शब्द का गम्भीर एवं उदार अर्थ भी इसी शब्द में छिपा हुआ है। प्राचीन जैनाचार्यं हरिभद्रसूरि एवं मलयगिरि ने सामायिक शब्द के विभिन्न अर्थों की दृष्टि से जो व्याख्याएँ की हैं, वे इस प्रकार हैं : १. समाय : 'रागद्वेषान्तरालवर्तितया मध्यस्थस्य आयः = लाभः
समायः समाय एवं समाधिकम्'। रागद्वेष में मध्यस्थ रहना सम है। अतः साधक को मध्यस्थ भाव या समभाव की प्राप्ति रूप
जो लाभ है, वह सामायिक हैं। २. समानि : 'ज्ञानदर्शन चारित्राणि, तेषु अयनं = गमनं समायः
स एव सामायिकम्'। ज्ञान दर्शन और चारित्र मोक्ष मार्ग के
साधन हैं, उनमें अयन् अर्थात् प्रवृत्ति करना सामायिक है। ३. 'सर्व जीवेषु मैत्री साम, साम्नो आयः = लाभः समायः स एव
सामायिकम् ।' सब जीवों पर मैत्रीभाव रखने को 'साम' कहते
हैं। अतः साम का लाभ जिससे हो, वह सामायिक है। ४. 'समः सावद्ययोग परिहार निरवद्ययोगानुष्ठानरूप जीव-परिणामः
६८ गोम्मटसार जीवकाण्ड (टीका) ३६८ । ६६ देखिये 'सामायिकसूत्र' पृ. ३५ ।
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