SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 83
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ७६ अलंकारचिन्तामणि पद-सार्थकतापूर्वक अंकित की गयी हैं और उनके पारस्परिक अन्तरोंका भी प्रतिपादन हुआ है। रस, गुण, रीति, वृत्ति आदिका विवेचन भी संक्षिप्त और तर्कसंगत है। चित्रालंकार सम्बन्धी धारणाएँ नितान्त मौलिक हैं । प्रस्तुत सम्पादन ___ अलंकारचिन्तामणिका सम्पादन दो हस्तलिखित प्रतियों और एक मुद्रित प्रतिके आधारपर किया गया है। मुद्रित प्रति सन् १९०७ में सोलापुरसे प्रकाशित हुई थी। यह प्रति अनेक स्थानोंपर अशुद्ध और त्रुटिपूर्ण थी। शेष दो हस्तलिखित प्रतियोंका विवरण निम्न प्रकार है __ 'क' प्रति-यह कन्नड़ लिपिमें अंकित ताड़पत्रीय प्रति है। ताड़पत्रकी लम्बाई और चौड़ाई १२"x२३" है। प्रतिमें कुल सत्तर पत्र हैं। प्रतिपत्र आठ पंक्तियाँ हैं और प्रति पंक्तिमें तिरसठ-चौंसठ अक्षर हैं। प्रतिके लेखनका समय नहीं दिया गया है । अनेक स्थानोंपर पाद-टिप्पणियाँ कन्नड़ भाषामें लिखी गयी हैं। यह प्रति पर्याप्त शुद्ध और प्रामाणिक है । यह प्रति मूडबिद्रीके ग्रन्यागारसे प्राप्त की गयी है। प्रतिकी स्थिति साधारण है । बीच-बीचमें कुछ अक्षर उखड़े हुए हैं । माजिनमें टिप्पणियाँ भी जहाँ-तहाँ उपलब्ध हैं । इन टिप्पणियोंमें कन्नड़ भाषामें कठिन शब्दोंके अर्थ अंकित किये गये हैं। . 'ख' प्रति-मूडबिद्रीकी अन्य ताड़पत्रीय प्रतिसे प्रतिलिपि की गयी है। इसकी पृष्ठसंख्या २११ है। प्रतिपृष्ठ लम्बाई और चौड़ाई १२३" ४७३" है। प्रतिपत्र छब्बीस पंक्तियाँ और प्रति पंक्ति दस अक्षर हैं । यह प्रतिलिपि शक-संवत् १७३० की पाण्डुलिपिके आधारपर की गयी है। जिस प्रति से यह प्रति लिखी गयी है उसमें शकसंवतका उल्लेख आया है। लिखा है शकाब्दे नगसूपभाजि विभवे माघे सिते चारुणि, सप्तम्यामुरुपद्मपण्डितिरिदं मे शान्तराजो लिखं । शास्त्रं सत्कविचक्रवर्त्यभिधयाख्यातोग्रजन्माहतो, भारद्वाजकुलो ह्यदोधिवसतात् सद्वृत्कुमार्कन्दुभम् ॥ यह प्रति शक सं. १७३०, विभव संवत्सर माघ शुक्ला सप्तमीको शान्तराजने लिखी है । इससे स्पष्ट है कि 'ख' प्रतिकी आधारभूत ताड़पत्रीय प्रति शक-संवत् १७३० में प्रतिलिपि की गयी है। सोलापुर द्वारा प्रकाशित प्रति इसी प्रतिके आधारपर सम्भवतः मुद्रित की गयी है । यद्यपि इस प्रतिमें भी कई महत्त्वपूर्ण पाठान्तर प्राप्त है। यह प्रति श्री पं. के. भुजबलीजीके सहयोग से उपलब्ध हुई है। _ 'ग' प्रति-सोलापुर द्वारा मुद्रित प्रतिकी संज्ञा 'ग' है। इस प्रति से भी सम्पादनमें सहयोग प्राप्त हुआ है। इसका प्रकाशन सन् १९०७ ईसवीमें हुआ है । 'क' और 'ख' प्रतियोंकी अपेक्षा 'ग' प्रतिमें कोई विशेषता उपलब्ध नहीं है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy