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अलंकारचिन्तामणि उपकारिणी मानी गयी हैं। लिखा है
"प्रतिभाव्युत्पत्ती मिथः समवेते श्रेयस्यौ" इति यायावरीयः ।
अलंकारचिन्तामणिमें भी प्रतिभा और व्युत्पत्तिको काव्यनिर्माणका हेतु बताया है। यद्यपि इस ग्रन्थमें अभ्यास और वर्णनक्षमताको भी स्थान दिया है, पर इन दोनोंको शक्तिके अन्तर्गत माना जा सकता है। शक्ति कर्तृरूप है और प्रतिभा एवं व्युत्पत्ति कर्मरूप । शक्तिशाली में ही प्रतिभा उत्पन्न होती है तथा शक्तिसम्पन्न ही व्युत्पन्न होता है। प्रतिभा शब्दोंके समूहको, अर्थों के समुदायको, अलंकारों एवं सुन्दर उक्तियोंको तथा अन्यान्य काव्य सामग्रीको हृदयके भीतर प्रतिभासित करती है । जो प्रतिभाहीन है, वह अप्रत्यक्ष पदार्थकी कल्पना नहीं कर सकता। प्रतिभासम्पन्न कवि ही अतीत और अनागतको प्रत्यक्षवत् अभिव्यक्त करता है। अतः अलंकारचिन्तामणिमें वर्णनक्षमता द्वारा शक्तिकी उद्भावना की गयी है। अजितसेनने लिखा है
प्रतिभोज्जीवनो नानावर्णनानिपुणः कृती । __ नानाभ्यासकुशाग्रीयमतियुत्पत्तिमान् कविः२ ।। यह विषय काव्यमीमांसाके तुल्य है। अलंकारचिन्तामणि में 'अभ्यास'को भी आवश्यक माना है, पर काव्यमीमांसामें अभ्यासको उतना महत्त्व नहीं दिया है। दोनों ग्रन्थों में निम्नलिखित समताएं विद्यमान हैं
१. काव्यपाकोंका निरूपण । २. रीतियोंका वर्णन। ३. अलंकार और गुणोंकी काव्यमें स्थिति ।
४. कविसमय । विषमताएँ
१. काव्यमीमांसामें शास्त्रचिन्तनकी प्रधानता है, पर अलंकारचिन्तामणिमें अलंकार, रस, गुण, दोष, वृत्ति आदिके वर्णन की।
२. काव्यमीमांसामें आलोचकों, कवियों एवं शब्द-अर्थाहरणका विषय आया है, अलंकारचिन्तामणिमें इसका सर्वथा अभाव है।
३. कविचर्या और राजचर्याका काव्यमीमांसामें समावेश है, पर अलंकारचिन्तामणिमें इसका अभाव है।
४. काव्यमीमांसामें कविसमयोंका विस्तारपूर्वक वर्णन आया है, पर अलंकारचिन्तामणिमें केवल निर्देशमात्र ही मिलता है।
५. काव्य परिभाषा के अन्तर्गत काव्यमीमांसामें अलंकार और गुणयुक्त वाक्यरचनाको स्थान दिया है, पर अलंकारचिन्तामणिमें रसका भी समावेश किया गया है।
१. काव्यमीमांसा-बिहार राष्ट्रभाषा परिषद् संस्करण, पंचम अध्याय, पृ. ३६ । २. अलंकारचिन्तामणि-श ।
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