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________________ -३९२]. पञ्चमः परिच्छेदः ३२९ बह्वायासेऽपि चौदार्य विनयोत्कर्षता यथा । प्रस्वेदबिन्दुवदनां श्लथकेशबन्धां । क्रीडारुणाक्षियुगलां रदपोडितोष्ठाम् । कण्ठस्तनादिनखरक्षतचन्द्रखण्डां तुष्टो विलोक्य निधिपो विनयान्वितां ताम् ॥३९१॥ चेष्टितैमधुरैलीला प्रियानुकरणं यथा । 'उषितं शयितं हसितं रमितं भ्रमितं सुगतं सुकृतम् ( सुधृतम् )। प्रियगं रमणीव नटी सरसा वरवासगृहेऽनुचकार वरा ॥३९२॥ चेष्टातिशयनं गात्रे विलापः प्रियवीक्षणात् । स्फुटन्नेत्रपमा स्मितोत्केसराढ्या लसद् वाम् द्विरेफोरुझङ्काररम्या। औदार्य बहुत परिश्रम करने पर भी सदा विनय भाव रखनेको औदार्य कहते है । उदाहरण चक्रवर्ती भरत पसीनासे युक्त मुखवाली, शिथिल केश बन्धनवाली, क्रोडाके कारण रक्तनयन, दांतसे पीडित ओष्ठवाली, कण्ठ और कुच इत्यादिपर नखक्षतसे खण्डिता, नम्रतासे युक्त उस प्रियतमाको देखकर परम प्रसन्न हुआ ॥३९१॥ लीला मधुर चेष्टाओं तथा वेषादिसे प्रियतमके अनुकरणको लीला कहते हैं । उदाहरण- . सरस नटीके समान किसी सुन्दरीने सुन्दर विलास भवन में प्रियतमके रहने, सोने, हंसने, रमण करने, घूमने और गमन करने, आदि सुकृत्योंकी नकल की ॥३९२॥ विलास प्रियतमके दर्शनसे स्थान, आसन, मुख और नेत्रादि क्रियाओंकी विशेषताओंको विलास कहते हैं। उदाहरण विकसित नेत्रकमलवाली, ईषद् हास्यरूपी केसरसे भरपूर, सुन्दर वचनरूपी १. उषितं हसितं शयितं रमितम्-ख । हसितं गदितं रमितम्-क । २. विलासः-क। ४२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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