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________________ ३४ अलंकारचिन्तामणि विद्यमान रहने से अलंकारचिन्तामणिका रचनाकाल ईसवी सन् १२५०-६० के मव्य है और इस ग्रन्थके रचयिता अजितसेन पाण्ड्यबंगकी बहन रानी विट्ठलदेवी के पुत्र कामिराय प्रथम बंगनरेन्द्रके गुरु हैं । भरतमुनिका नाट्यशास्त्र और अलंकारचिन्तामणि अलंकारशास्त्र के प्रथम आचार्यका स्थान उपलब्ध ग्रन्थोंके आधारपर महामुनि भरतको प्रदान किया जा सकता है। काव्यके लक्षण ग्रन्थोंमें सर्वप्रथम हमें इन्होंका नाट्यशास्त्र उपलब्ध होता है । यद्यपि काव्यमीमांसा में राजशेखरने शास्त्रसंग्रह नामक प्रथम अध्यायके प्रारम्भ में भरतमुनिके साथ सुवर्णनाभ, कुचमार, स्वयम्भू आदिके नामों का भी उल्लेख किया है । लिखा है तत्र कविरहस्यं सहस्राक्षः समाम्नासीत्, औक्तिकमुक्तिगर्भः, रीतिनिर्णयं सुवर्णनाभः, आनुप्रासिकं प्रचेताः, यमो यमकानि, चित्रं चित्राङ्गदः, शब्दश्लेषं शेषः, वास्तवं पुलस्त्यः, औपम्यमोपकायनः, अतिशयं पाराशरः, अर्थश्लेषमुतथ्यः, उभयालंकारिकं कुबेरः, वैनोदिकं कामदेवः, रूपकनिरूपणीयं भरतः, रसाधिकारिकं नन्दिकेश्वरः, दोषाधिकरणं धिषणः, गुणोपादानिकमुपमन्युः, औपनिषदिकं कुचमारः - इति । ततस्ते पृथक्-पृथक् स्वशास्त्राणि विरचयांचक्रुः । अर्थात् सहस्राक्ष इन्द्रने कविरहस्य, उक्तिगर्भने उक्तिविषयक ग्रन्थ, सुवर्णनाभने रीतिविषयक, प्रचेताने अनुप्राससम्बन्धी, यमने यमकसम्बन्धी, चित्रांगदने चित्रकाव्यविषयक, शेषने शब्दश्लेषविषयक, पुलस्त्यने स्वभावोक्तिविषयक, औपकायनने उपमालंकारसम्बन्धी, पाराशरने अतिशयोक्तिसम्बन्धी, उतथ्यने अर्थश्लेषविषयक, कुबेरने अलंकारविषयक, कामदेवने विनोदविषयक, भरतने नाट्यविषयक, नन्दिकेश्वरने रसविषयक, धिषण- बृहस्पतिने दोषविषयक, उपमन्युने गुणविषयक, और कुचमारने औपनिषदिक सम्बन्धी ग्रन्थरचना की है । राजशेखर के इस कथनमें कुछ कल्पित नामावली भी हो सकती है, पर सुवर्णनाभ, कुचमार, नन्दिकेश्वर आदि ऐतिहासित नाम हैं, जिनका समर्थन वात्स्यायन के कामसूत्र और भरतमुनिके नाट्यशास्त्रसे होता है । इसमें सन्देह नहीं कि उपलब्ध अलंकारशास्त्र में सबसे प्राचीन भरतमुनिका नाट्यशास्त्र ही है । यतः इसका उल्लेख महाकवि कालिदासके विक्रमोर्वशीय नाटक में आया है । २ नाट्यशास्त्रका विषय दृश्यकाव्य मीमांसा है । पर काव्यके श्रव्य और दृश्य इन दोनों भेदोंका निरूपण किया गया है । यह ग्रन्थ सैंतीस अध्यायों में विभक्त है | छठे अध्यायमें रस, सातवें में स्थायीभाव, व्यभिचारीभाव, चौदहवेंमें लक्षण और १. काव्यमीमांसा, बिहार राष्ट्रभाषा परिषद्, पटना, सन् १९५४, प्रथम अध्याय, पृ. सं. ४ । २. मुनिना भरतेन यः प्रयोगो भवतीष्वष्टरसाश्रयः प्रयुक्तः । ललिताभिनयं तमद्य भर्ता मरुतां द्रष्टुमनाः स लोकपालः ॥ - विक्रमोर्वशीय, २१८ । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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