SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 407
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१० अलंकारचिन्तामणिः [ ५।३१६कलासक्तः सुखी मन्त्रिसमर्पितनिजक्रियः । भोगी 'मृदुरचिन्तो यः स धोरललितो यथा ॥३१६।। गवाक्षसंलम्बितपादयुग्मप्रवेदितात्मस्थितिरुद्धहयें । चिक्रोड राजा परिरम्भचारुकटाक्षगीतादिभिरङ्गनाभिः ॥३१७॥ कलामार्दवसौभाग्यविलासी च शुचिः सुखी। रसिकः सुप्रसन्नो यो धीरशान्तो मतो यथा ।।३१८॥ कान्तास्यपद्मनयनद्यतिनालजालसंपीयमानतनुभं पुरि पर्यटन्तम् । सौधस्थितापि वनिता नवकामदेवं बाहू प्रसारयति तं परिरब्धुकामा ॥३१९।। चपलो वञ्चको दृप्तश्चण्डो मात्सर्यमण्डितः । विकत्थनो ह्यसौ नेता मतो धोरोद्धतो यथा ॥३२०॥ को सौंपनेवाला, भोगी और चिन्तारहित जो नायक होता है, उसे धीरललित कहते हैं ॥३१६॥ उदाहरण किसी राजाने खिड़कीपर फैलाये हुए दोनों चरणोंसे अपनी स्थितिको सूचित करते हुए, सुन्दरतम कोठेपर अनेक प्रकारके आलिंगन और कटाक्षादि कलाओंकी जानकारी रखनेवालो सुन्दरियों के साथ क्रीडा की ॥३१७॥ धीरशान्त ___ कला, मृदुता, सौभाग्य और विलाससे युक्त, पवित्र, सुखी, रसिक और अत्यन्त प्रसन्न रहनेवाले नायकको धोरललित कहते हैं ॥३१८॥ उदाहरण सुन्दर मुखपद्म और नेत्रोत्पलकी कान्तिसमूहसे आदरपूर्वक देखी जाती हुई, लावण्ययुक्त, नगरमें घूमते हुए विलक्षण कामदेवके समान सुन्दर उस राजाको आलिंगन करनेकी इच्छावाली कोठापर बैठी हुई कामिनी अपने दोनों हाथोंको फैलाती है ।।३१९।। धीरोद्धत चंचल, वंचक, घमण्डी, द्वेष करनेवाला और अपनी प्रशंसा करनेवाला धोरोद्धत नायक होता है ॥३२०॥ १. मधुरचिन्तो यः-ख । २. जालनाल....-ख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy