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________________ २८२ अलंकारचिन्तामणिः [ ५।२०२राज्ञां स्वस्त्रोजघनेषु क्रोडा वा आहोस्विद् गिरीणां सानुष्विति संशयात् । जुगुप्सामङ्गलबोडाधीकृदश्लीलकं त्रिधा । सोऽध उत्सर्गवास्तन्त्रः कृतान्तस्य महात्रिकः॥२०२।। अधोगतिवर्जितः शास्त्रेकृत्परः महानत्रिमुनिः। पक्षे-अध उत्सर्ग इत्यत्र अधोवायुप्रतीतेर्जुगुप्सा। कृतान्तस्य तन्त्र इत्यत्र यमाधीनत्वप्रतीतेरमाङ्गल्यम् । महात्रिक इति पृष्ठवंशाधरे त्रिकमिति प्रतीते/डा। शास्त्रेणैव प्रसिद्धं तदप्रतीतमिदं यथा। प्रशस्तौघ इवारीणां प्रशमाय क्षमो निधीट् ॥२०३॥ प्रशस्तौघः असंयतादिगुणस्थानमिति ओघ आगममात्रप्रसिद्धः । विरुद्धं शब्दशास्त्रेण च्युतसंस्कारमीरितम् । वन्दन्ति भक्तिभारेण नम्रा देवा जिनेश्वरम् ॥२०४॥ यहाँ राजाओंकी क्रीड़ा स्त्रियोंके जघनस्थलोंपर या पर्वतके शिखरोंपर हुआ करती है, इसमें सन्देह होनेसे सन्दिग्धत्व दोष है । अश्लीलत्वदोष और उसके भेद ___जुगुप्सा, अमंगल और बीड़ा उत्पादक शब्द जब श्लोक या पद्यमें आते हैं तो वहाँ अश्लीलता दोष माना जाता है। यह तीन प्रकारका होता है-(१) जुगुप्सा उत्पादक, (२) अमंगल सूचक, (३) बीड़ा उत्पादक । यथा-अधोगतिसे रहित यमराजके शास्त्रके निर्माणकर्ता महामुनि अत्रि हैं ॥२०२॥ अधोगतिसे रहित शास्त्रनिर्माता महान् अत्रि मुनि । दूसरे पक्षमें अधः उपसर्ग यहाँ अधोवायुको प्रतीति करानेसे जुगुप्सा सूचक है । 'कृतान्तस्य तन्त्रः' इस पदमें यमाधीनताकी प्रतीति होनेसे अमंगल सूचक है। 'महात्रिकः' में पृष्ठवंशके आधारकी प्रतीति त्रिक व्रीडाजनक है। अप्रतीतित्वदोष और उसका उदाहरण जो केवल शास्त्र में ही प्रसिद्ध हो उसे अप्रतीतत्व दोष कहते हैं। यथा--असंयत गुणोंके शास्ता चक्रवर्ती भरत शत्रुओंको शान्त करने में सर्वथा समर्थ हैं ॥२०३॥ 'प्रशस्तौघः' इस पदमें ओघ शब्द असंयतगुणका वाचक है, पर केवल आगममें ही यह शब्द उक्त अर्थका वाचक माना गया है । लोकमें इस अर्थमें ओघ शब्द प्रचलित नहीं है। च्युतसंस्कारका स्वरूप और उदाहरण ___ जो व्याकरणके अनुसार अशुद्ध हो उसे च्युतसंस्कार दोष कहते हैं । यथाभक्तिभावनासे विनीत देवगण जिनेन्द्र भगवान्की वन्दना करते हैं ॥२०४॥ १. व्रीडाधिकृताश्लीलकम्-ख। २. शास्त्रतत्परः-क-ख । ३. उत्सर्गवानित्यत्र--ख । ४. तदप्रतीतं यथा--ख । ५. प्रशस्ताघ ख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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