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________________ २७६ अलंकारचिन्तामणिः [५।१७६कि 'मर्माण्यभिनन्नभीकरतरोर्दुष्कर्मगर्मद्गणः । किं दुःखज्वलनावलीविलसितै लेहि देहश्चिरम् । कि गर्जद्यमतूर्यभैरवरवं नाकर्णयन्निर्णयं येनायं न जहाति मोहविहितां निद्राममन्दां जनः ।।१७६॥ अर्थचित्रं यथानिपीड्य लक्ष्मीमपहृत्य चक्रिरे ठकाः स्वकं जीवनमात्र शेषकम् । अपीदमायान्त्यपहतुमित्यगादपांनिधिर्वेपथु मूमिभिर्न तु ॥१७७॥ जन्माभिषेकाय क्षोरानयनाथं सुरेष्वागच्छत्सु सत्सु वारिधिरेवमभूत् । अरिष्टहय॑स्य सवज्रवेदेबलाङ्गनोलद्युतिपूरितस्य । मध्ये विरेजनवदीपमाला माला मणीनामिव वारिराशेः ॥१७८॥ अनुप्रासोपमाभ्यामुभयचित्रता। ध्वनिविशेषं न बमो विस्तरत्वात् । संयोगादिभिरनेकार्थवाचकः शब्दोऽभिधामूल: अवाच्यं व्यनक्तीति व्यञ्जनाविशेष उच्यते। शब्दचित्रका उदाहरण पापरूपी बलमक्षिकाओंके समहने भयोत्पादक वृक्षके मर्मस्थलको नहीं काटा है क्या ? दुःखाग्निसमूहकी चेष्टाओंसे यह शरीर नहीं चाटा-झुलसाया गया है क्या ? गरजते हुए यमराजके भयंकर वाद्यका शब्द नहीं सुना गया है क्या ? जिससे यह महामानव अज्ञानसे उत्पन्न महानिद्राको नहीं छोड़ता है ॥१७६।। अर्थचित्रका उदाहरण पहले मन्थनकर लक्ष्मीको छोनकर दरिद्र कर दिया, अब मेरे बचे हुए इस जीवनको हरण करने के लिए आ रहे हैं, इसलिए समुद्र चंचल लहरोंसे काँप रहा है क्या ? ॥१७७॥ जन्मसमय अभिषेकके हेतु जल लाने के लिए देवताओंके आनेपर समुद्रकी ऐसी दशा हुई। शब्दार्थचित्रका उदाहरण बालकके अंगको नीलकान्तिसे युक्त प्रसूतिगृहको मणिमय वेदीकी नूतन दीपमालिका समुद्र के मणियोंको मालाओंके समान सुशोभित हुई ॥१७८॥ यहाँ अनुप्रास और उपमाको योजना द्वारा शब्द और अर्थ चित्रित हैं। विस्तारके भयसे ध्वनि विशेषको नहीं कहा जा रहा है । १. मर्माण्यभिन्नन्न-ख । २. अवनमक्षिकाणां समूहः । प्रथमप्रतो पादभागे। क-खप्रती गर्युद्गणः । ३. निद्रामभद्रां जन:--क। निद्रामनिद्रां जनः--ख। ४. स्वका:-ख । ५. मूमिभिन्न क-ख । ६. व्यञ्जन इति विशेष उच्यते--ख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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