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________________ २२३ -३४५ ] चतुर्थः परिच्छेदः सिंह इव रथाङ्गभृत् कुञ्जरा इव द्विषन्तः इत्युपमायाः शूरे भीताः इति बाधकं प्रमाणं 'व्याघ्रादिभिर्गौणस् तदनुक्ता इति । कोऽर्थः । येन गणेन ते व्याघ्रादयः प्रवर्तन्ते स चेद् गुणः शब्देन न प्रतिपाद्यते तदा उपमेयवाचि सुबन्तमपमानवाचिना व्याघ्रादिना पूरुषसिंह इव समस्यते । यदा तु स गुणः शब्देन प्रतिपाद्यते तदा पुरुषव्याघ्रः शर इति न भवतीति उपमासमासनिषेधात् । रथाङ्गभृदेव सिंहः द्विषन्त एव कुञ्जरा इति पारिशेष्याद्रूपकालंकार एव । वाक्यार्थस्तबके खण्डवाक्यार्थस्तबके ध्वनी।। वाक्यार्थेऽपि पदार्थेऽपि दृष्टान्तादेरियं स्थितिः ॥३४५॥ वाक्यार्थेस्तबके दृष्टान्तादयः। खण्डवाक्यार्थस्तबके दीपकादयः। ध्वनावनुप्रासादयः । वाक्यार्थे उपमोत्प्रेक्षादयः पदार्थ रूपकादयः । इत्यलंकारचिन्तामणावर्थालंकारविवरणो नाम चतुर्थः परिच्छेदः ॥४॥ "सिंहके समान चक्री, हाथीके समान शत्रु' इस उपमाका 'शरे भीता' बाधक प्रमाण है और गौण व्याघ्रादिसे अनुक्त है। इसका तात्पर्य क्या है ? जिस गुणसे व्याघ्रादि प्रवृत्त होते हैं, वह गुण शब्दसे नहीं कहा जाता, तब उपमेयवाची सुबन्त उपमानवाची व्याघ्रादिके साथ 'पुरुषसिंह इव' समास होता है। किन्तु जब गुणका कथन शब्द द्वारा कर दिया जाता है, तब 'पुरुषव्याघ्रः शूरः' ऐसा नहीं होता है। उपमा समासके निषेधके कारण 'रथाङ्गभृद् एव सिंहः' 'द्विषन्त एव कुञ्जराः' इस परिशेषसे रूपकालंकार ही घटित होता है। वाक्यार्थसमूह, खण्डवाक्यार्थसमूह, ध्वनि, केवल वाक्यार्थमें भी और केवल पदार्थ में भी दृष्टान्त इत्यादिके होनेसे यह स्थिति है ॥२४५॥ __वाक्यार्थसमूहमें दृष्टान्त इत्यादि, खण्डवाक्यार्थमें दीपक इत्यादि, ध्वनिमें अनुप्रास इत्यादि वाक्यार्थमें उपमा, उत्प्रेक्षा आदि एवं पदार्थमें रूपक इत्यादि अलंकार रहते हैं। अलंकार चिन्तामणिमें अलंकार विवरणनामक चतुर्थ परिच्छेद समाप्त हुआ ॥४॥ १. व्याघ्रादिभिर्गौणैस्तदनुक्तावित्यत्र सूत्रे तदुक्ताविति-ख। व्याघ्रादिभिर्गौणैस्तदनुक्तावित्यत्र सूत्रे तदनुक्ताविति-क। २. व्याघ्रादिना पुरुषः सिंह इव पुरुषसिंह इति समस्यते-क-ख । ३. वाक्यार्थ इत्यस्य पूर्व-क-ख-एवं यथायोग्यं संसृष्टिसंकरी बोद्धव्यावितरालंकारेष्वपि विशेषान्तरमाह । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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