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________________ २०० अलंकारचिन्तामणिः [४।२७०तकन्यायमालालंकार उच्यतेसाधनात्साध्यविज्ञानमनुमानमिदं यथा। पदवाक्यार्थगो हेतुः काव्यलिङ्गं मतं यथा ॥२७॥ पदार्थगतत्वेन वाक्यार्थगतत्वेन वा यत्र हेतुः प्रतिपद्यते स काव्यलिङ्गालंकारः। चन्द्रप्रभं नौमि यदीयभासा, ननं जिता 'चान्द्रमसी प्रभा सा। न चेत्कथं तर्हि तद िलग्न-नखच्छलादिन्दुकुटुम्बमासीत् ॥२७१।। इदमनुमानम् । म्रियमाणोऽपि भव्यौघः पुनरुज्जीवनं गतः। पुरुदेवप्रसादश्रीजीवनौषधपानवान् ॥२७२।। *नरकादिघोरदुःखरूपमृतिप्राप्तानां भव्यानां पुनरुज्जीवने पुरुजिनधर्मप्रणोतिरूपप्रसादजोवनौषध हेतुः । पदार्थगतहेतुरिति काव्यलिङ्गमिदम् । तस्य विशेषणगतत्वेन पदार्थगतत्वम् । अब तर्कन्यायमूलक अलंकारोंका प्रतिपादन किया जाता है। जहाँ कारणसे कार्यको जानकारी प्राप्त की जाय, वहाँ अनुमान अलंकार होता है । आशय यह है कि जहां कवि-कल्पित साधनके द्वारा साध्यका चमत्कारपूर्वक वर्णन किया जाय, वहाँ अनुमान अलंकार होता है ॥२६९३॥ काव्यलिंग अलंकारका स्वरूप जहाँ पद और वाक्यार्थमें हेतु रहता है, वहाँ काव्यलिंग अलंकार माना जाता है । अर्थात् वर्णनीय विषयके हेतुरूप में किसी वाक्यार्थ या पदार्थका प्रतीयमान प्रतिपादन किया जाय, वहाँ कायलिंग अलंकार होता है ॥२७॥ अनुमानालंकारका उदाहरण मैं उन चन्द्रप्रभ स्वामीकी स्तुति करता हूँ, जिनकी प्रभासे चन्द्रमाकी वह प्रसिद्ध प्रभा चाँदनी जीत ली गयी थी, यदि ऐसा न होता तो चन्द्रमा समस्त परिवार नखोंके बहाने उनके चरणों में क्या आ लगता ॥२७॥ काव्यलिंगका उदाहरण ___ मरता हुआ भो भव्यसमूह पुरुदेवकी कृपासे सुन्दर जीवनरूपी औषधिको पो, पुनः जीवनको प्राप्त हुआ ॥२७२॥ ___ नरक इत्यादि भयंकर कष्टरूपी मरणको पाये हुए भव्यजीवोंके पुनः जीवन में पुरुदेवकी धर्मोपदेशरूपी कृपापूर्ण जीवनौषधि कारण है । पदार्थमें रहनेवाले हेतुके कारण यह काव्यलिंग है। हेतुके विशेषणमें रहनेसे पदार्थमें स्थिति मानी गयो है। १. तकन्यायमूलालङ्कारा उच्यन्ते -क-ख । २. चन्द्रमसि -ख । ३. नरकादिघोररूप.. -ख । ४. रूपसाधनजीवनी -ख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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