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________________ -१५४] चतुर्थः परिच्छेदः १५९ तत्र भेदे अभेदो यथाइक्ष्वाकुकुलवारीशी बभूव शिशिरद्युतिः ।। महालक्ष्मीपतिः सोऽयं चित्रं श्लाध्यतरो भुवि ॥१५३।। भरतचक्रिचन्द्रयोरभेदाध्यवसायः। लक्ष्मीचन्द्रयोः सोदरत्वेऽपि पतित्वप्रतिपादनाच्चित्वम् । श्रद्धान्यान्या तु विद्या समितिरपि परागुप्तिरन्या तपोऽन्यत् । सानुप्रेक्षापि भिन्ना चरितमपि परं स्युर्दशान्येऽपि धर्माः॥ नित्याश्लेषोत्थसौख्यप्रदपरमवधसङ्गसंपादने श्री ध्यानेनाधीश्वरस्य त्रिजगति कलिता कानु सामग्र्यतीद्धा ॥१५४।। श्रद्धादेरभेदेऽपि भेदकल्पना एकस्यैव च अतिशयकथनाय भेदवचनात् स्वतः जहां उपमेयको छिपाकर उपमानके साथ उसका अभेदस्थापन किया जाता है, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है। यहां उपमानमें उपमेयका अभेदाध्यवसान होता है-उपमेयको उपमान पूर्णतः आत्मसात् कर लेता है । उपमेयके निगोरण या अध्यवसानसे यहां इतना ही तात्पर्य है कि वह वाच्य-वाचक भावसे तो अप्रकाशित रहता है, पर लक्ष्य-लक्षक भावसे नहीं। लक्षणासे उपमेयकी सत्ता स्पष्ट हो जाती है। अतिशयोक्तिके भेद (१) भेदमें अभेद, (२) अभेदमें भेद, ( ३ ) सम्बन्धमें असम्बन्ध और (४) असम्बन्ध में सम्बन्ध वर्णन करना; इस प्रकार अतिशयोक्ति अलंकार चार प्रकारका है ॥१५२॥ भेदमें अभेद वर्णनारूप अतिशयोक्तिका उदाहरण इक्ष्वाकुवंशरूपी समुद्र में महालक्ष्मीपति-अत्यन्त सम्पत्तिशाली, पृथ्वीपर अत्यधिक प्रशंसनीय चन्द्रमा-भरत उत्पन्न हुआ, यह आश्चर्य है ॥१५३॥ चक्रवर्ती भरत और चन्द्रमा भिन्नता होनेपर अभेदाध्यवसाय है । लक्ष्मी और चन्द्रमा दोनों भाई-बहन हैं, फिर भी लक्ष्मोके पतित्वका प्रतिपादन किया है । इसलिए चित्र—आश्चर्य है। अभेदमें भेद वर्णनारूप अतिशयोक्तिका उदाहरण श्रद्धा भिन्न है, विद्या भिन्न है, समिति और गुप्ति भी परस्पर भिन्न हैं तप और अनुप्रेक्षा भी भिन्न है। चक्रोका आचरण और दशविधिकर्म भी भिन्न-भिन्न हैं। सर्वदा आलिंगनजन्य सुखप्रद सर्वोत्कृष्टवधू के संगमवाले तीनों लोक में अधीश्वरके ( मुक्तिरमारूपी वधूके संग समालिगित अधीश्वर ) श्रीयुत् ध्यान में समागत कौन सामग्रो भिन्न है, अर्थात् कोई सामग्री भिन्न नहीं है ॥१५४॥ १. वाराशी-ख। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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