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________________ -७] ११७ चतुर्थः परिच्छेदः प्रतीयमानत्ववाच्यत्वाभ्यामन्यत्वम् । व्यंग्यवाच्यद्वयस्थ प्रस्तुतत्वे पर्यायोक्तिः, अप्रस्तुतप्रशंसा वाच्यस्याप्रस्तुतत्वे कथ्यते, ततस्ते भिन्ने । पक्षधर्मत्वव्याप्त्याद्यसंभवादनुमानतो भिन्नं काव्यलिङ्गम् । साधारणगुणयोगित्वेन भेदादर्शने द्विवाक्यगत । प्रथममें केवल उपमेयकी उपमानसे समता बतायी जाती है और द्वितोयमें उपमेय और उपमान परस्पर एक दूसरेका उपमान और उपमेय बनते चलते हैं। समासोक्ति और अप्रस्तुतप्रशंसामें अन्तर समासोक्ति और अप्रस्तुतप्रशंसा में अप्रस्तुतके प्रतीयमान और वाच्य होनेके कारण भिन्नता है। इन दोनों अलंकारोंमें दो-दो अर्थों को प्रतोति होती है-एक वाच्यार्थ और दूसरा व्यंग्यार्थ । अप्रस्तुतप्रशंसामें अप्रस्तुत वाच्य रहता है और प्रस्तुत व्यंग्य; पर समासोक्तिमें प्रस्तुत वाच्य रहता है और अप्रस्तुत व्यंग्य । दोनों एक-दूसरे के विलोम हैं। पर्यायोक्ति और अप्रस्तुतप्रशंसा मिन्नता ___ व्यंग्य और वाच्य इन दोनोंके प्रस्तुत होनेपर पर्यायोक्ति अलंकार होता है। केवल वाच्यके अप्रस्तुत होनेपर अप्रस्तुतप्रशंसा अलंकार होता है, अतः पर्यायोक्ति और अप्रस्तुतप्रशंसा भिन्न-भिन्न अलंकार हैं। आशय यह है कि पर्यायोक्तिमें वाच्यार्थ और व्यंग्यार्थ दोनों प्रस्तुत रहते हैं, पर अप्रस्तुतप्रशंसा में केवल वाच्यार्थ ही प्रस्तुत रहता है । पर्यायोक्तिमें वाच्यार्थको प्रधानता होती है, पर अप्रस्तुतप्रशंसामें व्यंग्यार्थ को । प्रथममें वाच्य-वाचकभाव मूलतः व्यंजनाका भंग्यन्तरमात्र कहा जाता है, जबकि द्वितीयमें ऐसी बात नहीं होती । अनुमान और काव्यलिंगमें मिन्नता अनुमानालंकारमें पक्षधर्मता और व्याप्तिको स्थिति रहती है, काव्यलिंग में नहीं। अतः ये दोनों भिन्न हैं । ये दोनों ही अलंकार तकन्यायमूलक हैं । तात्पर्यसिद्धि के निमित्त थोड़े अन्तरके साथ कारणका प्रयोग दोनोंमें होता है। काव्यलिंगमें कार्य-कारणभाव वाच्य नहीं, व्यंग्य होता है; पर अनुमानमें साध्य-साधनभाव वाच्य होता है। अनुमानमें समर्थक हेतु-कारक हेतु रहता है, किन्तु काव्यलिंगमें ज्ञापक हेतु होता है। सामान्य और मीलन अलंकारमें भिन्नता साधारण गुणका सम्बन्ध रहनेके कारण भेद प्रतीत न होनेपर सामान्य और उत्कृष्ट गुणके योजनाहोन गुणके प्रकाशित न होनेपर मोलितालंकार होता है; अतः ये दोनों परस्पर भिन्न हैं। भाव यह है कि सामान्य अभेदप्रधान अध्यवसायमूलक है और मीलित अभेदप्रधान आरोपमूलक । मीलितमें सबल वस्तु निर्बल वस्तुको छिपा लेती है, पर सामान्य में दोनों वस्तुएं एक-दूसरीसे घुल-मिल जाती हैं । मोलितमें साधर्म्यके कारण निर्बल वस्तु इस प्रकार छिप जाती है कि उसका भेद कुछ भी लक्षित नहीं होता, पर सामान्यमें यह भेद पूर्णतः नहीं छिपता । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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