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________________ ११२ [ 818 प्रेयोरसवदूर्जं स्विसमाहितभाविकेषु रसभावादिः प्रतीयते । उपमाविनोक्तिविरोधार्थान्तरन्यास विभावनोक्तिनिमित्तविशेषोक्ति विषमसमचित्राधिका ऽन्योन्यकारणमालैकावली दीपकव्याघातमालाकाव्यलिङ्गानुमानयथा संख्यार्थाप - तिसारपर्यायपरिवृत्तिसमुच्चयपरिसंख्याविकल्पसमाधिप्रत्यनीक विशेषमीलनसा - मान्यासङ्गतितद्गुणातद्गुणव्याजोक्तिप्रतिपदोक्तिस्वभावोक्तिभाविकोदात्तेषु विपश्चिच्चेतोरञ्जनं स्फुटं प्रतीयमानं न विद्यते । व्याजस्तुत्युपमेयोपमासमासोक्तिपर्यायोक्त्याक्षेपपरिकरानन्वयातिशयोक्त्य प्रस्तुतप्रशंसानुक्तनिमित्तविशेषोक्तिषु वस्तुप्रतीयमानं काव्यालङ्कारत्वं याति । परिणामसन्देहरूपक भ्रान्तिम दुल्लेखस्मरणापह्नवोत्प्रेक्षातुल्ययोगिता दीपकदृष्टान्तप्रतिवस्तूपमाव्यतिरेकनिदर्शनाश्लेषसहोक्तिषु गम्यमानोपम्यम् । एवमलङ्कारसादृश्य विभागः । भेदप्रधानमतभेदप्रधानमुभयप्रधानमिति साधम्यं त्रिधा । तत्पुनरुपमानोपमेययोः स्वतो भिन्नत्वाच्छाब्दमेव न वास्तवमित्येके । तदसत् साधर्म्यस्य वस्तुरूपत्वादन्यथा खरविषाणशशविषाणयोरप्युपमानोपमेयत्वप्रसङ्गात् । अलंकारचिन्तामणिः - · अभाववाली, (३) प्रतीयमान वस्तुवाली, और (४) प्रतीयमान औपम्य आदि वाली -- इस प्रकार अर्थालंकृति चार प्रकारकी होती है ॥४॥ अलंकारों में प्रतीयमानकी व्यवस्था - - प्रेयस्, रसवद्, ऊर्जस्वी, समाहित और भाविक अलंकारोंमें रस और भाव आदिको प्रतीति होती है । उपमा, विनोक्ति, विरोध, अर्थान्तरन्यास, विभावना, उक्तिनिमित्तविशेषोक्ति, विषम, सम, चित्र, अधिक, अन्योन्यकारणमाला, एकावली, दीपक, व्याघात, माला, काव्यलिंग, अनुमान, यथासंख्य, अर्थापत्ति, सार, पर्याय, परिवृति, समुच्चय, परिसंख्या, विकल्प, समाधि, प्रत्यनीक, विशेष, मीलन, सामान्य, संगति, तद्गुण, अतद्गुण, व्याजोक्ति, प्रतिपदोक्ति, स्वभावोक्ति, भाविक और उदात्त अलंकारों में विद्वानोंके चित्तको आनन्दित करनेवाली वस्तु स्पष्टतया प्रतीयमान नहीं होती । Jain Education International व्याजस्तुति, उपमेयोपमा, समासोक्ति, पर्यायोक्ति, आक्षेप, परिकर, अनन्वय, अतिशयोक्ति, अप्रस्तुत प्रशंसा और अनुक्तनिमित्त विशेषोक्ति अलंकारों में वस्तु प्रतीयमान होकर काव्यालंकारत्वको प्राप्त होती है । परिणाम, सन्देह, रूपक, भ्रान्तिमान्, उल्लेख, स्मरण, अपह्नव, उत्प्रेक्षा, तुल्ययोगिता, दीपक, दृष्टान्त, प्रतिवस्तूपमा, व्यतिरेक, निदर्शना, श्लेष और सहोक्ति अलंकारोंमें औपम्य प्रतीयमान रहता है । इस प्रकार अलंकारों में सादृश्य - विभाग है । १. समविषम इति - ख । २. ख प्रती केवलं तद्गुण इति पदमस्ति । अतद्गुण इति पदं नास्ति । ३. प्रतीपवक्रोक्तिस्वभावोक्ति - ख । ४. स्वतानेता - ख । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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