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________________ ७२ अलंकारचिन्तामणिः [ २११३८- जग्ले कयाऽपि सोत्कण्ठं किमप्याकुल मूर्च्छनम् । विरहेऽङ्गनया कान्तं समागमनिराशया ॥१३८।। व्यञ्जनच्युतकम् । जग्ले । गानपक्षे लकारे लुप्ते गानं चकार । ग्लै हर्षक्षये इति धातुः । सोत्कण्ठं गद्गदकण्ठम् । किमप्याकुलमूर्च्छनम् ईषदाकुलस्वरविश्रामं यथा भवति तथा। कः पञ्जरमध्यास्ते कः परुषनिस्वनः । कः प्रतिष्ठा जीवानां कः पाठ्योऽक्षरच्युतः ॥१३९।। अक्षरच्युतप्रश्नोत्तरम् । शुकः पञ्जरमध्यास्ते काकः परुषनिःस्वनः । लोकः प्रतिष्ठा जीवानां श्लोकः पाठयोऽक्षरच्युतः ।।१४०।। प्रतिष्ठा आश्रयः । पूर्वोक्तश्लोकस्य प्रश्नोत्तरमत्र द्रष्टव्यम् । प्रकट होता है। 'समाने जङ्घ यस्याः सा समजङ्घा । अर्यात् समान जंघाओं वाली स्त्री शीत ऋतु में पुत्र की कामना करती है। इस पद्यमें उच्चारणकालमें मात्राच्युति है और अर्थकथन करते समय मात्राच्युति नहीं रहती; बल्कि संयोग रहता है । व्यंजनच्युतकका उदाहरण हे माता! कोई स्त्री अपने पतिके साथ विरह होनेपर उसके समागमसे निराश हो व्याकुल और मूछित होती हुई गद्गद स्वरसे कुछ खेदखिन्न हो रही है ।।१३८३॥ इस पद्यमें 'जग्ले' क्रियापद रहनेसे 'खेदखिन्न होने रूप' अर्थकी संगति घटित नहीं होती; अतः 'ल' व्यंजनको च्युतकर 'जगे' क्रियापद रहता है । अतः पद्यका वास्तविक अर्थ निम्न प्रकार होगा--- हे देवि ! कोई स्त्री पतिका विरह होनेपर उसके समागमसे निराश होकर स्वरोंके उतार-चढ़ावको व्यवस्थित करती हुई उत्सुकतापूर्वक कुछ गा रही है। जगेका अर्थ 'गानं चकार' गान गाया है। ग्लै हर्षक्षये धातुसे 'जग्ले' क्रियापद निष्पन्न होता है। 'सोत्कण्टम्' का अर्थ गद्गद कण्ठ और मूर्छनापूर्वक स्वरोंका उतार-चढ़ाव करना है। अक्षरच्युत प्रश्नोत्तरका उदाहरण हे माता ! पिंजड़ेमें कौन रहता है ? कठोर शब्द करनेवाला कौन है ? जोवोंका आधार क्या है ? और अक्षरच्युत होनेपर भी पढ़ने योग्य क्या है ? ॥१३९३।। पिंजड़े में शुक.---तोता रहता है। कौवा कठोर शब्द करनेवाला है। जीवोंका आधार लोक है। अक्षरच्युत होनेपर भी श्लोक पढ़ने योग्य है ॥१४०।। १. गजे -खप्रतो अधिको पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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