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________________ ६१ -११५ ] द्वितीयः परिच्छेदः गन्धवाहसमः। गन्ध । धवाः। वाह तुरङ्गम । हस । मया श्रिया सह वर्तते समः । पश्चान्मिलित्वोत्तरम् । शृङ्खलाजातिः ।। के दहन्ति वनमार्तयन्ति के पूजयन्ति जिनमादराच्च के। आह्वयाशु हरितोषकारिणं सीरिणं विषमवृत्तमस्ति किम् ॥११३।। दामावारानाम । दावाः माराः । मारेण स्मरेणाक्रान्ता। वाना व्यन्तराः। राम । एकान्तरितशृङ्खलाजातिः॥ नागाकारधरे बन्धे वर्णाः पाठयाः कृतान्तराः । प्रोक्तवाक्योद्भवं श्रित्वा नागपाशं विदुश्च तत् ॥११४॥ वल्ल्यां संबुध्यतां रम्यः कस्तापहरमुच्यताम् । कीदृक् मिथ्यारुचिः पुम्भ्यो वेश्यावीथी च कीदृशी ॥११५।। उत्तर-गन्धवाहसमः-गन्ध, नासिकासे ग्रहण करने योग्यका सम्बोधन है । धवाः-पति, स्त्रियोंसे समालिंगित शरीरवाले पति हैं। वाहः-अश्व, युद्धमें राजाओंके लिए हितकारक है। तुरङ्गम-अश्वके समान गमनक्रियामें प्रवीण पति स्त्रियोंके लिए सुरतकालमें सम्बोध्य है। हस-हास्य, चन्द्रकिरणके समान स्वच्छ है । लोकमें समःसमता रखनेवाला श्लाघ्य है। गन्धवाहसमः--पवनके समान अनासक्त सदा गतिमान् शरीरवाले परिग्रह त्यागी मुनीश्वर होते हैं । यह शृंखलाजातिका उदाहरण है। वनको कौन जलाता है ? कौन इधर-उधर धुमाकर पीड़ित करता है ? जिनको अत्यन्त आदरसे कोन पूजते हैं ? हरिको सन्तुष्ट करनेवाले बलभद्रका सम्बोधन क्या है ? विषमवृत्त कौन है ? बतलाइए ॥११३३॥ उत्तर-दामावारानाम । दावा:-दावाग्नि वनको जलाती है। मारा:कामदेव प्राणियोंको इधर-उधर घुमाकर पीड़ित करता है। वाना:-व्यन्तर, जिनेन्द्रको अत्यन्त आदरके साथ पूजते हैं। राम-हरि-कृष्णको सन्तुष्ट करनेवाले बलभद्र या बलरामका सम्बोधन राम है। असमान वर्ण और मात्रावाला विषमवृत्त होता है। यह एकान्तरित शृंखलाजातिका उदाहरण है। नागपाश चित्रणका लक्षण सर्पाकृति धारण करनेवाले-बन्ध-रचना-विशेषमें व्यवधान किये हुए वर्णोंको पढ़ना चाहिए। इस रीतिका निर्मित वाक्यका आश्रय लेकर जो बन्धरचित होता है, उसे विद्वानोंने नागपाश कहा है ॥११४३॥ ___ लतामें रम्य लगनेवालेका सम्बोधन क्या होता है ? तापहरण करनेवालेको क्या कहते हैं ? पुरुषोंको मिथ्याश्रद्धा कैसी होती है ? वेश्याओंकी गली कैसी होती है ? ॥११५३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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