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द्वितीयः परिच्छेदः का कृष्णवल्लभा लोके संबोधय महोत्तमम् । जिनं तत्पूजने योग्यं किं काऽऽनन्देत्सरस्तटे ॥१००।। सारसावली । सा । सार । सारस । मेलने । सारसपक्षिणां पंक्तिः । न पूज्य इति कस्त्याज्यो विवेकिभिरिहोच्यताम् । आद्यवर्णद्वयं दत्वा रणयोग्याश्च के वद ॥१०॥ सप्तयः । यः धाता । आद्यवर्णद्वययोगे तुरगाः। मानसाहारमश्नाति बहुकालमतीत्य कः । मध्ये वर्णद्वयं दत्वा जिनकायश्च कीदृशः ॥१०२॥ सुकुमारः । सुरः । मध्यवर्णद्वययोगे सुकुमारः कोमलः ।
लोकमें कृष्णकी प्रियतमा कौन है ? सर्वश्रेष्ठ जिनका सम्बोधन क्या है ? जिनके पूजन करने योग्य क्या है ? सरोवरके तटपर आनन्दित करनेवाली कौन है ॥१००१॥
उत्तर-सारसावली । सा-लक्ष्मी कृष्णकी प्रियतमा है। जिनका सम्बोधन 'हे सार' है। जिनको पूजा सारस-कमलसमूहसे की जाती है। सरोवरके तटपर सारस पक्षियोंकी अवली-श्रेणी आनन्दित करती है।
पूजनीय नहीं होने के कारण विवेकियोंसे त्यागने योग्य इस संसारमें कौन है ? इस उत्तरके आदिमें दो अक्षर जोड़ देनेपर युद्धके योग्य कौन होता है ? बतलाइए ॥१०१३॥
उत्तर-सप्तयः । 'यस्त्यागे नियमे वायो यमे धातरि पातरि'-यः-यम या ब्रह्मा त्यागने योग्य है। इस सन्दर्भ में यम अर्थ अधिक उपयुक्त है । 'यः' के आदिमें 'सप्त' इन दो वर्णों के जोड़नेपर 'सप्तयः' हुआ, यह पद अश्ववाचक है, जो युद्ध में सहायक होता है।
बहुत समय बीत जानेपर कौन मानसिक आहार ग्रहण करता है ? उत्तरवाचक इस शब्दके बीचमें दो वर्ण जोड़ देनेपर जिनेश्वरका शरीर वाचक शब्द बन जाता है, बतलाइए जिनेश्वरका शरीर कैसा होता है ? ॥१०२३॥
उत्तर-सुकुमार:-सुरः-देव, बहुत समय बीत जानेपर देवता मानसिक आहार ग्रहण करते हैं। इस 'सुर' शब्दके मध्यमें दो वर्ण कुमा जोड़नेपर-सु + कुमा + र=सुकुमार-अत्यन्त मृदुल शब्द बनता है। यही जिनेश्वरके शरीरका वाचक है अर्थात् जिनेश्वरका शरीर सुकुमार होता है।
१. सा च लक्ष्मीनिगद्यते ॥ सारसं सरसोरुहमित्यभिधानात्पद्मम् ॥ पुष्कराह्वस्तु सारसः हंसविशेषः । मूलग्रन्थे पादभागे । २. यस्त्यागे नियमे वायौ यमे धातरि पातरि ।। मूलग्रन्थे पादभागे।
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