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अलंकारचिन्तामणिः संबध्यतां ब्रह्म कवाटयुग्मं प्रणयते कः सकल प्रजाभिः ।।। वाजी च रूपं लिटि किं च लक्ष्मीप्रदायकामन्त्रणमत्र किं भोः ।।९०॥ संबध्यतामङ्गणमुत्तमोक्तिः का का च पंक्तिर्वनितेड्यते का। रमा च का ऽऽमन्त्रणमुत्तमेशे श्रीवर्धमानेऽपि किमत्र वाच्यम् ॥९१।।
वोरराज । उश्च ईश्च वो उः शंभुः। उ तापेऽव्ययमोशाने इति वैजयन्ती रराज । वीरराज । जरा। रवी। जरारवो जरया विशिष्ट आरवो जरारव असौ यस्य । विः। राः । रजः। शिरोवाजी शिरोदन्तरजो वाजी रजस् तथेत्यभिधानात् अकारान्तरजशब्दोऽस्ति ॥ अजर । अर । अविः। अज। अरर । अवी। अवनमवः पालनं सोऽस्यास्तीति ।। जवी। अर । ईर। अजिर । वीरा विशिष्टा इरा वाक ।। राजो। वरा। ई। वरराज । वीरराज ॥ सर्वतोभद्रजातिः।
ब्रह्माका सम्बोधन क्या है ? कपाट-किवाड़के जोड़ेका वाचक शब्द कौन है ? सम्पूर्ण जगत् किसे प्रणाम करता है ? घोड़ा कैसा श्लाघ्य होता है ? लिट् लकारमें रूप कौन है ? लक्ष्मी वाचक शब्दका सम्बोधन क्या है ? ॥९॥
आँगन वाचक शब्दका सम्बोधन क्या है ? उत्तम पुरुषोंकी उक्ति कैसो होती है ? पंक्ति किसे कहते हैं ? कौन वनिता पूजी जाती है ? लक्ष्मी-प्रदायक शब्दका सम्बोधन कौन है ? उत्तम व्यक्तिके लिए सम्बोधन क्या है ? श्री वर्धमान स्वामीका सम्बोधन क्या है ? बतलाइए ॥९१३॥
उत्तर-वीरराज । उ:-शम्भुः, इ:-कामः; उश्च इश्च वी-शम्भु और स्मरारिका वाचक शब्द है । 'रराज' यह लिट् लकारका रूप है । शूरेश्वर-श्रेष्ठ वीरका सम्बोधन वीरराज है । इसको उलटा करनेसे जरा शब्द निकला-जरा-वृद्धावस्था केशोंको पका देती है। भूमण्डलमें रवि—सूर्य-प्रकाशित है अर्थात् चमकता है ।
वृद्धावस्थासे युक्त वाणीको जराठी कहते हैं। विः शब्द पक्षो वाचक है । निर्धनको सन्तुष्ट करनेवाला राः-धन है। नेत्रोंको कष्टकारक रजः--धूलि है।
देवतावाचक शब्दका सम्बोधन अजर है। चक्रधारा-वाचक शब्द अर है। मेष अर्थात् भेड़ा वाचक शब्द 'अविः' है ।
ब्रह्मवाचक शब्दका सम्बोधन अज है। कपाटयुगल—किवाड़ोंकी जोड़ीका वाचक शब्द 'अरद' है। सभीका पालन-पोषण करनेवाला विष्णु समस्त जगत्से प्रणम्य है। जवी-वेगशाली अश्व प्रशंसित है। लिट् लकारमें 'अर' रूप होता है । लक्ष्मीप्रदायक शब्दका सम्बोधन 'ईर' है । 'ईर' का अर्थ लक्ष्मी देनेवाला है।
आँगनवाचक शब्दका सम्बोधन 'अजिर' है। उत्तम पुरुषों को उक्तिको वि + इरा:-विशिष्ट वाणी कहा जाता है । पंक्तिवाचक शब्द 'राजी' है । वरा श्रेष्ठा नारीको पूजा होती है । रमा-लक्ष्मी वाचक शब्द 'ई' है। श्रेष्ठ देवके लिए सम्बोधन 'वरराज' है । वर्धमान स्वामीका सम्बोधन 'वीरराज' है। यह सर्वतोभद्रजातिका उदाहरण है ।
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