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________________ अलंकारचिन्तामणिः [२।८०कुत्रास्ते गुणसंततिजिनपतिः कोदृक् च 'यस्तार्किकः कीदृग्धर्मबलादभूद्वरजिनो भारः कुतो नीयते । कीदृक्षा मुनयो वनेऽपि सुगुरावायाति शिष्योऽपि च कोदृक्षो बहुशस्यते बुधवरैः कीदृग्दरिद्रो वद ॥८॥ अनयोऽकूप्यदशयः अकके मोहो नष्टोभियोमायः । अनयः अयहीनः। नीतिहीनः । अकूप्यत्कोपं कृतवान् । न विद्यते कुप्यं कौशेयादिर्यस्य तत् अकूप्यं दरिद्रवन्दं तदिवाचरदकुप्यत् ।। अशयो निद्राहीनः । न श्यति न कृशं भवतीति अशं मुक्तिपदं यातीति ।। अकति कुटिलं चरतीति अकः स चासौ कश्च ब्रह्मा तस्मिन् । कको तौल्यं न यस्यासौ अकको मुनिस्तस्मिन् ॥ अमोहः '' अम अपरिमिता ऊहा युक्तयो यस्य ।। अनष्टः । पक्षे शकटात् । अभियः । अभि.....। च । अमायः लक्ष्मीपुण्याभ्यां होनश्च ।। पद्मप्रश्नजातिः । गुणसमूह कहाँ रहता है ? जिनेश्वर कैसे होते हैं ? अधिक ताकि .. होता है ? कर्मके बलसे भगवान् जिनेश्वर कैसे हुए ? भार कैसे ढोया जाता है ? मुनि वनमें कैसे रहते हैं ? सद्गुरुके आनेपर शिष्य कैसा व्यवहार करता है ? विद्वान् किसकी अधिक प्रशंसा करते हैं ? दरिद्र कैसा होता है ? बतलाइए ॥८०१॥ उत्तर--अनयोऽकुप्यदशयः अकके मोहो नष्टोभियोमायः । अनयः-अयहीनःभाग्यरहित मनुष्य दुःखी होता है। अनयः-नोतिहीन-अन्यायपूर्वक आचरण करतेवाला राजा दुष्ट होता है । अकुप्यत् -जिनेन्द्रने मोहपर कोप-क्रोध किया । अकुप्यत्जिसके पास धन नहीं-अलोभियोंका कुल दरिद्रके समान होता है। अशयः-निद्रारहित मुनि होते हैं। अशय-नित्य मुक्तिपदको सिद्ध प्राप्त करते हैं। कुटिल आचरण करनेवाले ब्राह्मण में गुण नहीं होते । अकके-जिनकी कोई समता नहीं कर सके अर्थात् समान दृष्टिवालोंमें गुण निवास करते हैं । अमोह-मोहरहित जिनेश्वर होते हैं । अमा-असीम, ऊहा-तकणा शक्तिवाला ताकिक होता है। धर्मबलसे जिनेश्वर नष्ट नहीं होते । अनष्ट शकटात्मजबूत गाड़ी द्वारा भार ढोया जाता है। अभिय-निर्भय होकर मुनि वनमें निवास करते हैं । अभियः-स्वागत-अच्छा शिष्य गुरुके आनेपर उठकर स्वागत करता है। अमायः-प्रपंचरहित सरल स्वभाववाले व्यक्तिको विद्वान् प्रशंसा करते हैं। अमायःलक्ष्मी और पुण्यरहित दरिद्र होता है। ये पद्म प्रश्न जातिचित्रके उदाहरण हैं। १. कस्ताकिकः -क। २. लौल्यं यस्यासौ -क। ३. अपरिमितियुता ऊहाः -ख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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