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द्वितीयः परिच्छेदः
उक्तस्य नुः परामृष्टो कः शब्दो भेदवाचि किम् ॥ अव्ययं केन नातोषि सूत्रं किं प्रक्रियास्थितम् ||६०॥ सहार्थेन । सौत्रजातिः ॥
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न श्लाघ्यते मुनिः कस्मै सुबन्तं किं निगद्यताम् । अकाराद्यनुबन्धानां धातूनां नाम किं वद ॥ ६१॥
परस्मैपदम् । मुनिः परस्मै न श्लाघते स्वगुणाधिकं धर्मं न ज्ञापयति अपितु स्वनिन्दां पर प्रशंसां च करोतीत्यर्थः । शाब्दीजातिः ॥
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"श्रावेण गमयेत् कालं कया वृक्षः पतत्यधः ।
कः कीदृशः सुधी ग्राह्यो धर्मः सारतरो वद || ६२॥ दयामूल: दयादानेन अमूलः ।
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वधूजनों को सन्तुष्ट करता है । जैनोंको अनेकान्त रुचिकर होता है और कुवादियों को नहीं । यह ताजाति चित्रका उदाहरण है ।
कही हुई बात विचारमें कौन शब्द है ? भेदवाचक अव्यय कौन है ? किससे सन्तोष नहीं हुआ ? प्रक्रियामें विद्यमान सूत्र कौन है ? ||६०३ ॥
उत्तर - सहार्थेन । कही हुई बातके विचार में सहार्थ शब्द है । भेदवाचक अव्यय सह है । अर्थ - धन-सम्पत्ति से सन्तोष नहीं होता । प्रक्रियामें विद्यमान सूत्र 'सह' है । यह सोत्रजातिका उदाहरण है ।
मुनि किससे आत्मप्रशंसा नहीं करता है ? सुबन्तको क्या कहते हैं ? अकारादि इत्संज्ञक धातुको क्या कहते हैं ? बतलाइए ॥ ६१३॥
उत्तर -- - परस्मैपदम् । मुनि दूसरोंसे अपनी आत्मश्लाघा नहीं करते हैं । सुबन्तको पद कहते हैं । अकारादि अनुबन्धक धातुओंको परस्मैपद कहते हैं । यह शाब्दीजातिका उदाहरण है ।
किस क्रियाको सुनकर समय व्यतीत करना चाहिए ? जाता है ? विद्वान्को कैसे अपनाना चाहिए ? धर्मका सार क्या
कोन वृक्ष नीचे गिर ? बतलाइए ॥ ६२३ ॥
अर्थात् दयाका आचरण
उत्तर- दयामूलः । दया -- / दय् क्रियाको सुनकर करते हुए समय व्यतीत करना चाहिए । मूलरहित वृक्ष नीचे गिर जाता है । विद्वान्को दया और दान सम्मानपूर्वक अपनाना चाहिए । धर्मका सार दया और दान है ।
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१. शब्दः - ख । २. श्लाघते - क ख । ३. ख चकारो नास्ति । ४ आत्मनेपदमिति वा पाठ: तदनुसारेण ङकाराद्यनुबन्धानामिति पाठः । आत्मने न श्लाघते मुनिः । स्वश्लाघां न अधिक: पाठ: । ५. श्रावको क ख ।
करोतीत्यर्थः ।
क- ख
६. ग्राह्यः ख ।
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