SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ -६२ ] द्वितीयः परिच्छेदः उक्तस्य नुः परामृष्टो कः शब्दो भेदवाचि किम् ॥ अव्ययं केन नातोषि सूत्रं किं प्रक्रियास्थितम् ||६०॥ सहार्थेन । सौत्रजातिः ॥ 1 न श्लाघ्यते मुनिः कस्मै सुबन्तं किं निगद्यताम् । अकाराद्यनुबन्धानां धातूनां नाम किं वद ॥ ६१॥ परस्मैपदम् । मुनिः परस्मै न श्लाघते स्वगुणाधिकं धर्मं न ज्ञापयति अपितु स्वनिन्दां पर प्रशंसां च करोतीत्यर्थः । शाब्दीजातिः ॥ 3 "श्रावेण गमयेत् कालं कया वृक्षः पतत्यधः । कः कीदृशः सुधी ग्राह्यो धर्मः सारतरो वद || ६२॥ दयामूल: दयादानेन अमूलः । ४३ वधूजनों को सन्तुष्ट करता है । जैनोंको अनेकान्त रुचिकर होता है और कुवादियों को नहीं । यह ताजाति चित्रका उदाहरण है । कही हुई बात विचारमें कौन शब्द है ? भेदवाचक अव्यय कौन है ? किससे सन्तोष नहीं हुआ ? प्रक्रियामें विद्यमान सूत्र कौन है ? ||६०३ ॥ उत्तर - सहार्थेन । कही हुई बातके विचार में सहार्थ शब्द है । भेदवाचक अव्यय सह है । अर्थ - धन-सम्पत्ति से सन्तोष नहीं होता । प्रक्रियामें विद्यमान सूत्र 'सह' है । यह सोत्रजातिका उदाहरण है । मुनि किससे आत्मप्रशंसा नहीं करता है ? सुबन्तको क्या कहते हैं ? अकारादि इत्संज्ञक धातुको क्या कहते हैं ? बतलाइए ॥ ६१३॥ उत्तर -- - परस्मैपदम् । मुनि दूसरोंसे अपनी आत्मश्लाघा नहीं करते हैं । सुबन्तको पद कहते हैं । अकारादि अनुबन्धक धातुओंको परस्मैपद कहते हैं । यह शाब्दीजातिका उदाहरण है । किस क्रियाको सुनकर समय व्यतीत करना चाहिए ? जाता है ? विद्वान्को कैसे अपनाना चाहिए ? धर्मका सार क्या कोन वृक्ष नीचे गिर ? बतलाइए ॥ ६२३ ॥ अर्थात् दयाका आचरण उत्तर- दयामूलः । दया -- / दय् क्रियाको सुनकर करते हुए समय व्यतीत करना चाहिए । मूलरहित वृक्ष नीचे गिर जाता है । विद्वान्‌को दया और दान सम्मानपूर्वक अपनाना चाहिए । धर्मका सार दया और दान है । For Private & Personal Use Only १. शब्दः - ख । २. श्लाघते - क ख । ३. ख चकारो नास्ति । ४ आत्मनेपदमिति वा पाठ: तदनुसारेण ङकाराद्यनुबन्धानामिति पाठः । आत्मने न श्लाघते मुनिः । स्वश्लाघां न अधिक: पाठ: । ५. श्रावको क ख । करोतीत्यर्थः । क- ख ६. ग्राह्यः ख । Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy