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द्वितीयः परिच्छेदः
अथ तावद्दुवे शब्दालंकारं तं चतुर्विधम् । चित्रवक्रोक्त्यनुप्रासयमकाश्रितभेदतः ॥१॥ धीराष्ठ्यबिन्दुमद्विन्दुच्युतकादित्वतोऽद्भतम् । करोति यत्तदत्रोक्तं चित्रं चित्रविदा यथा ॥२॥ तच्च बहुविधम्उभे व्यस्तसमस्ते च द्विय॑स्तद्विः समस्तके । उक्तव्यस्तसमस्तंच द्वियंस्तकसमस्तकम् ।।३।। द्विः समस्तकसव्यस्तमेकालापं प्रभिन्नकम् । भेद्यभेदकमोजस्वि सालंकारं च कौतुकम् ॥४॥ प्रश्नोत्तरसमं पृष्टप्रश्नभग्नोत्तरं तथा । आदिमध्योत्तराभिख्येऽन्तोत्तरमपह्नतम् ॥५॥
शब्दालंकारके भेद
___ कविशिक्षाके अनन्तर चित्र, वक्रोक्ति, अनुप्रास और यमक भेदवाले चार प्रकारके शब्दालंकारका निरूपण करता हूँ ॥ १ ॥ चित्रालंकार
धीरोष्ठय, बिन्दुमद, बिन्दुच्युतकादि अनेक ऐसे अलंकार हैं, जिन्हें देखसुनकर आश्चर्य होता है, अतः इस प्रकारके अलंकारको चित्रालंकार कहते हैं ॥ २ ॥ चित्रालङ्कारके अनेक भेद हैंचित्रालंकारके अनेक भेद
(१) व्यस्त (२) समस्त ( ३ ) द्विःव्यस्त ( ४ ) द्विः समस्त (५) व्यस्तसमस्त ( ६ ) द्विः व्यस्त-समस्त (७) द्विः समस्तक-सुव्यस्त (८) एकालापम् ( ९) प्रभिन्नक (१०) भेद्य-भेदक (११) ओजस्वी ( १२) सालङ्कार (१३ ) कौतुक ( १४ ) प्रश्नोत्तर (१५) पृष्टप्रश्न ( १६ ) भग्नोत्तर ( १७ ) आद्युत्तर ( १८ ) १. निरोष्ठय-ख । २. त्वतोऽद्भुतम्-7; त्वतोच्युतम्-ख । ३. उक्तं व्यस्तसमस्त च-क।
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