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________________ अलंकारचिन्तामणिः [११६१विरहे तापनिःश्वासमनश्चिन्ताकृशाङ्गताः। शिशिरीष्ण्यनिशादैयं जागराहासहानेयः ॥६१॥ सुरते सीत्कृतिग्रीवानखदन्तक्षतादयः । काञ्चीकङ्कणमञ्जीररवमायितादयः ।।६२।। स्वयंवरे सुसन्ताहो मञ्चमण्डपकन्यकाः । तस्या भूपान्वयख्याति-सम्पदाकारवेदनम् ॥६३।। मधपानेऽलिमाश्रित्य भ्रमप्रेमादिरुच्यताम् । महान्तो ने सूरां दूष्यां पिबन्ति पूरुदोषतः ॥६४॥ पूष्पोपचयने पुष्पावचयो वक्रसूक्तयः। गोत्रस्खलनमाश्लेषः परस्परविलोकनम् ॥६५॥ विरहके वर्णनीय विषय विरहका वर्णन करते समय उष्ण निःश्वास, मानसिक चिन्ता, शरीरकी दुर्बलता, शिशिर ऋतुमें गर्मीकी अधिकता, रात्रिकी दीर्घता, रात्रि-जागरण, हंसी और प्रसन्नताके अभावका चित्रण करना चाहिए ॥ ६१ ॥ सुरतके वर्णनीय विषय सीत्कार, कंठालिंगन, नखक्षत, दन्तक्षत, करधनी-कंकण-मंजीरकी ध्वनि और स्त्रीका पुरुषके समान आचरण अर्थात् विपरीत रति आदिका वर्णन सुरत वर्णनके प्रसंगमें करना चाहिए ॥ ६२ ॥ स्वयंवरके वर्णनीय विषय ___ स्वयंवर वर्णनके अवसरपर सुन्दर नगाड़ा, मञ्च, मण्डप, कन्या तथा स्वयंवर में पधारे हुए राजाओंके वंश, प्रसिद्धि, यश, सम्पत्ति, रूप-लावण्य, आकृति प्रभृतिका चित्रण करना चाहिए ॥ ६३ ॥ मदिरापानके वर्ण्य विषय मदिरापानके अवसरपर भ्रमरको लक्ष्य कर भ्रान्ति और प्रेमादिका स्पष्ट वर्णन करना चाहिए। महापुरुष मदिराको रागादि दोषके उत्पादक होनेके कारण उसे नहीं पीते हैं । मदिरापानके वर्णन प्रसंगमें व्यंग्य और सूच्य द्वारा प्रेम, रति एवं अन्य क्रियाव्यापारोंका उल्लेख करना आवश्यक है ॥ ६४ ॥ पुष्पावचयके वर्ण्य विषय पुष्पावचयके अवसरपर पुष्पचयन, परस्पर वक्रोक्ति, गोत्रस्खलन-कहना कुछ चाहते हैं, पर मुखसे कुछ और ही निकलता है, परस्पर आलिंगन एवं रागभावपूर्वक अवलोकन इत्यादिका वर्णना करना अपेक्षित है ॥ ६५ ॥ १. हारहानयः-ख । २. व ख । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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