________________
अलंकारचिन्तामणिः
[ २४३उद्याने कलिकापुष्पफलवल्लीकृताद्रयः । पिकालिकेकिचक्राद्याः पथिकक्रीडनस्थितिः ॥४३॥ अद्रौ शृङ्गगुहारत्नवनकिन्नरनिराः । सानुधातुसुकूटस्थमुनिवंशसुमोच्चयाः ।।४४।। अरण्येऽहिहरिव्याघ्रवराहहरिणादयः । द्रुमा भल्लूकघूकाद्या गुल्मवल्मीकपर्वताः ॥४५॥ मन्त्रे पञ्चाङ्गतोपायशक्तिनैपुण्यनीतयः ।
दूते स्वपरपक्षश्रीदोषवाक्कौशलादयः ।।४६।। उद्यानके वर्णनीय विषय
उद्यानमें कलिका, कुसुम, फल, लताओंसे युक्त कृत्रिम पर्वतादि तथा कोयल, भ्रमर, मयूर, चक्रवाक एवं पथिकक्रीडाका वर्णन करना चाहिए ॥४३॥ पर्वतके वर्णनीय विषय
पर्वतके वर्णन प्रसंगमें शिखर, गुफा, बहुमूल्य रत्न, वनवासी किन्नर, झरना, सानु, गैरकादि धातु, उच्च शिखर पर निवास करने वाले मुनि, कुसुमोंकी अधिकता आदिका वर्णन करना अपेक्षित है ।।४४।। वनके वर्णनीय विषय
___वन-वर्णनके प्रसंगमें सर्प, सिंह, व्याघ्र, सूअर, हरिण तथा विविध तरुओं के साथ भालू , उल्लू इत्यादि का और कुञ्ज, वल्मीक एवं पर्वत इत्यादिका वर्णन करना आवश्यक है ॥ ४५ ॥ मन्त्र के अन्तर्गत वर्णनीय विषय
__ मन्त्रमें (१) कार्यारम्भ करनेका उपाय, (२) पुरुष और द्रव्य-सम्पत्ति, (३) देशकालका विभाग, (४) विघ्न-प्रतीकार और (५) कार्यसिद्धि इन पांचों अंगोंका; साम, भेद, दान और दण्ड इन चार उपायोंका; प्रभाव, उत्साह और मन्त्र इन तीन शक्तियोंका; कुशलता तथा नीतिका वर्णन करना चाहिए । मन्त्र शक्तिको ज्ञानबल, प्रभुशक्तिको कोशबल और सेनाबल एवं उत्साहशक्तिको विक्रमबल कहा गया है ॥४५॥ दूतके वर्णनीय विषय
दूतका वर्णन करते समय उसकी स्व-पर पक्षके वैभव तथा दोष आदिकी जानकारी एवं वाणोका चातुर्य आदिका वर्णन करना आवश्यक है ॥ ४६ ॥
१. वल्लिक-ख । २. तुंधे-ख । ३, शक्तिषागुण्यनीतयः-क तथा ख ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org