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________________ ६ [२२२ अलंकारचिन्तामणिः पदं' यथा यथा तोषः सुधियामुपजायते । तथा तथा सुमाधुर्यनिमित्तं यतिरुच्यते ॥२२॥ भारती मधुराऽल्पार्थसहिताऽपि मनोहरा। तमस्समूहसंकाशा पिकीव मधुरध्वनिः ॥२३॥ तानि वानि कथ्यन्ते महाकाव्यादिषु स्फुटम् । कविवृन्दारकर्यानि प्रबन्धेषु बबन्धिरे ॥२४॥ भूभुक्पत्नी पुरोधाः कुलवरतनुजामात्यसेनेशदेशग्रामश्रीपत्तनाब्जाकरशरधिनदोद्यानशैलाटवीद्धाः । मन्त्रो दूतः प्रयाणं समृगयतुरगेभत्विनेन्द्वाश्रमाजिश्रीवीवाहा वियोगास्सुरतवरसुरापुष्कला नर्मभेदाः ॥२५॥ भगवान्के चरणयुगलको नमस्कार करता हूँ। इस पद्यमें 'प्रणमामि' क्रियापदमें-से 'प्र' उपसर्गका विच्छेद करने पर 'नमामि' कर्णसुखद है ॥२१॥ यतिमाधुर्यको व्यवस्था __ जैसे-जैसे पदकी समाप्तिपर यति रहनेसे विद्वानोंको आनन्द प्राप्त होता है, वैसे-वैसे यतिको माधुर्यका कारण माना जाता है। आशय यह है कि यतिसौम्य ही यतिमाधुर्यका कारण है ॥२२॥ माधुर्यका महत्त्व अल्प अर्थवाली भी मधुरवाणो अत्यन्त कृष्ण वर्णवाली मधुर ध्वनि करनेवाली कोयलके समान मनका हरण करनेवालो होतो है ॥२३॥ महाकाव्यके वर्ण्यविषय महाकवियोंने अपने बड़े-बड़े प्रबन्धग्रन्थों में जिन वर्णनीय विषयोंका निर्देश किया है, महाकाव्योंमें उन वर्णनीय विषयोंका अत्यन्त स्पष्ट रीतिसे वर्णन किया जाता है ॥२४॥ राजा, राजपत्नी-महिषी, पुरोहित, कुल, श्रेष्ठपुत्र या ज्येष्ठपुत्र, अमात्य, सेनापति, देश-ग्राम-सौन्दर्य, नगर, कमल-सरोवर, धनुष, नद, वाटिका, वनोद्दीप्त पर्वत, मन्त्र-शासन सम्बन्धी परामर्श, दूत, यात्रा, मृगया-आखेट, अश्व, गज, ऋतु, सूर्य, चन्द्र, आश्रम, युद्ध, कल्याण, जन्मोत्सव, वाहन, वियोग, सुरत-रतिक्रोडा, सुरापान, नाना प्रकारके क्रीडा-विनोद आदि महाकाव्यके वर्ण्य विषय हैं ॥२५॥ १. एवं-क। २. पुष्पवन्नर्मभेदा:-क । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001726
Book TitleAlankar Chintamani
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAjitsen Mahakavi, Nemichandra Siddhant Chakravarti
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1944
Total Pages486
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Kavya
File Size25 MB
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