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१. घनवाहन और अकलंक
घनवाहन का जन्म
___ *त्रैलोक्य को आश्चर्यान्वित करने वाला, दुःखों को दूर करने वाला और सम्पूर्ण जगत् को आह्लादित करने वाला साह्लाद नामक एक विशाल नगर है। जहाँ स्त्री-पुरुषों के युगल परस्पर अन्तःकरण के प्रेम से और अपने रूप एवं शक्ति से काम-लीलायें करते हुए कामदेव एवं रति का भ्रम उत्पन्न करते थे। इस साह्लाद नगर में जीमूत नामक राजा राज्य करता है, जिसने अपने समस्त शत्रुओं को समूल नष्ट कर दिया है। जो स्वयं महारथी है और उसके प्रताप-तेज से अंजित होकर समस्त सामन्तवर्ग मानपूर्वक नमस्कार करता है। इस राजा के लीलादेवी नामक कार्यकुशल एवं रति के समान प्रानन्दायिनी महारानी है जिसे राजा ने अपने अन्त:पुर की पटरानी बना रखा है। [१-४)
हे अगहीतसंकेता ! भवितव्यता द्वारा दी हई नई गोली के प्रभाव से और उसके आदेशानुसार मैंने लीलादेवी की कोख में प्रवेश किया । नौ माह से कुछ अधिक दिन तक नारकीय पीड़ा को सहन करने के पश्चात् उचित समय पर मैं उसकी कुक्षि से बाहर आया । [५-६]
मेरे जन्म से मेरी माता लीलादेवी बहुत प्रसन्न हुई। प्रेमाच प्रों से पूरित उसके नेत्र प्रानन्द से चपल हो गये और पुत्ररत्न की प्राप्ति से वह अत्यन्त हर्षित हुई । मेरे साथ ही उसी समय मेरे अन्तरंग मित्र पुण्योदय का भी जन्म हुआ, किन्तु वह मेरे अन्तरंग (गुप्तरूप से शरीर में समाया) होने से उसे कोई भी नहीं देख सका। मेरी माता की प्रियंकरी नामक दासी ने मेरे जन्म की राजा को बधाई दी, जिसे सुनकर राजा भी अत्यन्त हर्षित हुआ । राजा ने सन्तुष्ट चित्त होकर उसे महादान देकर उसका दासीपन समाप्त कर दिया। नगर भर में जन्मोत्सव मनाया गया, जेल से कैदियों को छोड़ा गया, स्थान-स्थान पर नौबत और शहनाई बजने लगी, घर-घर में प्रानन्दोत्सव, नृत्य, गायन, खानपान और दान आदि होने लगे । चारों तरफ राज्य के सभी लोग मेरे जन्मोत्सव से आनन्दित हुए। ज्योतिष-शास्त्र
जन्मोत्सव मनाने के पश्चात् मेरे पिताजी ने सिद्धार्थ नामक प्रसिद्ध ज्योतिषी को बुलाकर मेरे जन्म समय के ग्रह-नक्षत्रों के भावफल के सम्बन्ध में पूछा । ज्योतिषी ने कहा कि, देव ! जैसी आज्ञा । सुनिये
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