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प्रस्ताव ६ : वरिष्ठ-राज्य
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आवश्यकता नहीं रही । वह सर्वतन्त्र-स्वतन्त्र हो गया और अनन्त आनन्द, अनन्त वीर्य, अनन्त ज्ञान और अनन्त दर्शन से परिपूर्ण होकर, समस्त क्रियाओं से रहित होकर निरन्तर रमण करने लगा। चित्तवृत्ति महाराज्य का सफलतापूर्वक पालन/ रक्षण करने के फलस्वरूप उसे अनन्त काल तक निर्वृत्ति नगरी में निवास करने का सुयोग मिला । [५८६-५६०]
हे देव ! इस प्रकार अपने राज्य का विधिपूर्वक पालन कर वह उत्तम महीपति निर्वृत्ति नगरी में पहुँचा। [५६१]
१६. वरिष्ठ-राज्य
कर्मपरिणाम राजा ने छठे वर्ष में अपने छठे पुत्र वरिष्ठ को राज्य के सिंहासन पर स्थापित किया । गत वर्षों की भांति इस वर्ष भी नये राजा के स्थापित किये जाने की घोषणा ढोल बजाकर की गई। महामोहराज और चारित्रप..की राज्यसभा में भी उनके मंत्रियों ने नये राजा के गुरणों के विषय में विस्तृत जानकारी दी। महामोहराज आदि तस्कर तो इस नये राजा के विषय में सुनकर आनन्दहीन, निस्तेज और अभिमानरहित होकर मृतप्राय: हो गये । चारित्रधर्मराज की सेना अत्यन्त हर्षित हुई । सम्पूर्ण साधु-मण्डल अतिशय प्रमुदित हुना
और उन्होंने पूरे देश में बधाइयाँ भेजीं। उत्तम राजा ने राज्य-साधन में जो कुछ किया था वही इस वरिष्ठ राजा ने भी किया, अत: उसका फिर से वर्णन करना अनावश्यक है । इस राजा की विशेषता यहाँ बतला रहा हूँ। [५६२-५६६]
इस राजा का सिद्धान्त गुरु से पहले कई बार परिचय हो चुका था और वह स्वयं भी बुद्धिशाली होने से उसने सिद्धान्त गुरु के वचनों/निर्देशों का अनुसरण किया था। अतः अभी राज्य-प्राप्ति के समय उसे सिद्धान्त गुरु से पूछने की
आवश्यकता नहीं रही थी । 'राज्य क्या है और उसे प्राप्त करने के साधन क्या हैं ?' इस विषय में भी उसे मार्ग-निर्देश/उपदेश की आवश्यकता नहीं रही, क्योंकि यह महाभाग्यशाली वरिष्ठ सम्पूर्ण राज्य-परिस्थिति को पहले से ही जानता था, उसके हेतु और साधनों को भी जानता था और सम्पूर्ण अन्तरंग राज्य-मार्ग को देख सकता था। वरिष्ठ महाराजा अपनी स्वयं की शक्ति से राज्य पर स्थापित हुए थे, अत: अनेक बहिरंग राज्य के महात्मा उनकी पदाति सेना में भर्ती हो गये। वरिष्ठ की सेना में प्रविष्ट महात्मा भिन्न-भिन्न गणों/समुदायों में बाह्य For Private & Personal Use Only
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