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________________ १८८ उपमिति भव-प्रपंच कथा सुख क्या है और कहाँ है, इसे न जानने से विपरीतमति के कारण इन्द्रिय सुख को ही वह वास्तविक सुख मानने लगता है । वह अधम बाह्य प्रदेश में ऐसा भटक गया कि उसकी तुलना राज्य कर्मचारी, अभिनेता, भाट, चारण या जुआरी से की जा सकती है । स्वयं राजा होते हुए भी वह संसार में सर्वत्र अभिनेता और जुझारी के रूप में पहचाना जाने लगा । महामोह राजा की सेना के प्रभाव में वह दुनियां में व्यभिचारी, महापापी, विवेकीजनों की दृष्टि में दयापात्र, नास्तिक, मर्यादाहीन और धर्मानुष्ठानों का द्व ेषी बन गया । धर्म करने वालों को वह हास्य पूर्वक ढोंगी, भोगहीन और भाग्यहीन कहने लगा और अर्थ तथा काम में तल्लीन लोगों को विद्वान् मानने लगा । वह समझने लगा कि जिसकी स्त्री अपने वश में हो, जिसे नित्य नूतन सौन्दर्य दर्शन प्राप्त होता हो और जिसके पास अगणित धन हो उसे यहीं मोक्ष प्राप्त है, वही सच्चा सुखी है, अन्य सब तो व्यर्थ ही विडम्बना मात्र हैं । इस प्रकार अधम राजा ने बाह ्य प्रदेश में ही भटकते हुए अपना सर्वस्व खो दिया, अच्छे विचारों से वंचित रहा और ऐसी निकृष्ट दशा में ही आनन्द मानने लगा । [ ४७६ - ४८२ ] अन्यदा अधम को एक रूपवती चाण्डालिन स्त्री दिखाई दी और दृष्टिदेवी के प्रभाव से वह उस पर श्रासक्त हो गया । उसे अपनी कुल मर्यादा, लोकलज्जा, कलंक, अपयश, पाप या भविष्य का भी विचार न हुआ । न तो उसे लोकनिन्दा का भय हुआ और न ही उसने कार्य प्रकार्य का विचार किया I * उस चाण्डालिन स्त्री के रूप-सौन्दर्य का लम्पट बनकर वह उसी की तरफ निर्निमेष दृष्टि से एकटक देखने लगा और अन्य समस्त व्यवहार भूल गया । अधम का ऐसा अति विपरीत लोकनिन्द्य तुच्छ व्यवहार देखकर सब लोग उसकी निन्दा करने लगे, तिरस्कार करने लगे और उसे फटकारने लगे । अर्थात् अन्तरंग राज्य से भ्रष्ट होकर वह बाहय प्रदेश में भी जन-समूह से निन्दित हुआ । सब लोगों ने इकट्ठे होकर उस महान् अकार्य करने वाले अधम को राज्य से निकाल दिया; क्योंकि " गुणों की ही सर्वत्र पूजा होती है ।" फिर बाह्य प्रदेश में भी प्रति भयंकर दुःखों को सहन कर निकृष्ट की तरह अधम को भी कर्मपरिणाम राजा ने रुष्ट होकर, यह कहकर कि 'तुमने राज्य बहुत गलत ढंग से किया, तुम्हें राज्य करना नहीं आता' पापीपिंजर नामक महा भयानक स्थान में डाल दिया । यहाँ भी उसे प्रनन्तविध दुःख प्रदान किये गये । [ ४८३-४६०] वितर्क कहने लगा कि, उस समय मेरे मन में विचार आया कि निकृष्ट की तरह अधम राजा भी राज्य मिलने पर भी ऐसी दुरावस्था को प्राप्त हुआ, वह अपने राज्य, अपनी सेना और अपने बल-वीर्य को नहीं जान सका, इसका भी एकमात्र कारण उसका अज्ञान ही था अन्य कोई कारण नहीं । [ ४६१ ] * पृष्ठ ५६२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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