SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 967
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १८६ उपमिति-भव-प्रपंच कथा विषयाभिलाष-देव ! मैंने अभी बताया था कि अधम अर्थ और काम में अधिक आसक्त है, इसलिये हम सभी को मिलकर उसे बाह.य प्रदेश में धन बटोरने और विषय सेवन में इतना व्यस्त रखना चाहिये कि वह अपने अन्तरंग राज्य में प्रवेश ही न कर सके। __ महामोह ने आज्ञा दी कि, 'आर्य ! ऐसा ही करो। यह योजना सेना को बतला दो, जिससे अधम प्रतिपल धन और विषयों में डूबा रहे और अन्तरंग में झांक भी न सके ।' आज्ञा सुनते ही समस्त सैन्य योजना-पूर्ति में संलग्न हो गया । [४४८-४५१] योगिनी दृष्टिदेवी की नियुक्ति विषयाभिलाष मंत्री की एक दृष्टि नामक पुत्री जो अत्यधिक चतुर, परमयोगिनी, अतिस्वरूपवान, विशालाक्षी एवं आकर्षक थी और सभा में बैठी थी, उसने महाराजा से कहा-देव । आपने तो देवता, दानवों और मनुष्यों को पहले ही जीत रखा है, फिर आपके समक्ष अधम की शक्ति भी कितनी सी है जो उस अकेले को जीतने के लिये आप सब तैयार हुए हैं । महाराज ! आप आज्ञा दें तो मैं अकेली ही उसे वश में कर सकती हूँ, इस में क्या बड़ी बात है। आप सब व्यर्थ में क्यों चिन्तित हो रहे हैं ? हे देव ! मैं आपको विश्वास दिलाती हूँ कि थोड़े ही समय में मैं उसे राज्य-भ्रष्ट कर दूंगी, उसके अन्तरंग राज्य से उसे दूर रखूगी और आपका प्राज्ञाकारी बना दूंगी। मैं ऐसा उपाय करूंगी कि वह न केवल अपने बल और सेना से बेखबर रहे अपितु सदा अपनी सेना से रुष्ट रहे । हे देव ! मेरे इस कथन में आप तनिक भी संशय नहीं करें । हे स्वामिन् ! यह तो आप मानते ही हैं कि मैं जहाँ जाती हूँ वहाँ स्पर्श आदि भाई-बहिन मेरे सहचारी रूप में मेरे साथ ही रहते हैं और ये स्पर्श आदि अपने ही व्यक्ति हैं । मैं जिस किसी पुरुष को वशीभूत करने जाती हूँ उस समय भाव से आप सब लोगों का सामीप्य भी मुझे प्राप्त होता है। आपको स्मरण होगा कि गत वर्ष निकृष्ट राजा तो धन और विषय लोलुपता से रहित था, उसे भी मैंने आपके सान्निध्य में राज्य-भ्रष्ट कर पापीपिंजर नरक में पहुँचा दिया था । अतः इसे अपने अंतरंग राज्य में जाने से रोकने में तो कठिनता ही क्या है ? हे स्वामिन् ! अब आप विलम्ब न कर मुझे शीघ्र आज्ञा प्रदान करें ताकि मैं उस अधम राजा को उसके राज्य में प्रवेश ही न करने दू। महामोह राजा ने दृष्टि देवी को विश्वासपात्र और योग्य समझ कर अधम राजा को वश में करने की आज्ञा दे दी और दृष्टि देवी तत्क्षण ही बाह य प्रदेश में अधम राजा के पास पहुंच गई। [४५२-४६०] इधर चारित्रधर्मराज के मण्डल में भी अधम राजा के राज्य के समाचारों से खलबली मच गई, समस्त मण्डल त्रस्त और भयभीत हो गया। जैसे गत वर्ष निकृष्ट के राजा बनने पर विचार-विमर्श हुआ था और सारे प्रदेश में शोक फैल For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy