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________________ १८४ उपमिति-भव प्रपंच कथा चोरों पर बहुत प्रेम था और उन्हें अपना हितेच्छू मानता था। चारित्रधर्मराज और उनके अधीनस्थ राजाओं का तो वह नाम भी नहीं जानता था। यह स्थिति देखकर कर्मपरिणाम राजा उस पर बहुत क्रोधित हुए और 'तुझे राज्य का पालन करना नहीं आता' यह कहकर बेचारे निकृष्ट को भवचक्र के पापीपिंजर नामक अति भयंकर स्थान पर भेज दिया, जहाँ उसे अनेक बार अनन्त पीड़ायें दी गईं और महादुःखी किया गया, ऐसा मैंने सुना। [४१६-४३०] निकृष्ट राज्य पर चिन्तन अपने स्वामी अप्रबुद्ध को निकृष्ट के बारे में बतलाते हुए वितर्क ने आगे कहा-अहा ! एक तो बेचारा निकृष्ट अपने राज्य में प्रवेश ही नहीं कर सका।* उसके प्रवेश के पहिले ही तस्करों ने उसके सम्पूर्ण राज्य का हरण कर लिया और उसकी अति उत्तम सेना भी घिर गई । परिणाम स्वरूप बेचारे ने यहाँ भी अनेक दुःख पाये, राज्य से भ्रष्ट हुअा और दूसरा नारकी में जाकर वहाँ भी अनेक प्रकार के त्रास निरर्थक ही सहे । उस दुरात्मा निकृष्ट को यह सब दुःखों का समूह और पीड़ा अज्ञान के कारण ही हुई है, क्योंकि वह पापी अधमाधम जीव अपने राज्य को भी नहीं पहचान सका । यदि उसे पता होता कि उसका राज्य रत्नों से पूर्ण एवं अति सुन्दर है और यदि उसे चारित्रधर्मराज की सेना का पता होता तो वह अपने सच्चे मित्रों को मित्र रूप में ग्रहण करता और महामोहराज तथा उसकी सेना को अपना शत्रु समझता, जिससे उसे इतनी दुःख-परम्परा प्राप्त नहीं होती। यदि उसने सत्य को सम्यक् प्रकार से समझा होता तो अपनी शक्ति और नीति का भलीभांति उपयोग कर, चोर लोगों की सेना को भगा कर अपने राज्य पर निष्कंटक राज्य करता । [४३१-४३६] __जो होना था वह तो हुआ ही । मुझे चिन्ता करने से क्या ? अब मुझे तो आपकी आज्ञानुसार दूसरे अधम के राज्य में जाकर पता लगाना था, अतः वहाँ जाकर मैंने क्या अनुभव किया ? वह आपको सुनाता हूँ। [४३७] - - ___ * पृष्ठ ५८६. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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