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प्रस्ताव ६ : निकृष्ट-राज्य
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मोह-राज्य में प्रसन्नता
महामोह -हे आर्य ! कर्मपरिणाम ने इस निकृष्ट को कैसा बनाया है ? विस्तार से शीघ्र ही बतलाओ । [३८७]
विषयाभिलाष- देव ! सुनिये-निकृष्ट एकदम कुरूप, भाग्यहीन, महानिर्दय, परलोकज्ञान से पराङमुख, धर्म-अर्थ-काम-मोक्ष से दूर, गुरु-निन्दक, महापापी, देव-द्वषी और विशुद्ध अध्यवसाय की गन्धमात्र से रहित है। वह संसार को उद्विग्न करने वाला, साक्षात् विषांकुर और दोष-समूह का घर है । गम्भीरता, उदारता, पराक्रम, धैर्य, शक्तिस्फुरण आदि गुण तो इस निकृष्ट से पलायन कर दूर ही दूर रहते हैं । अधमाधम, अपने समग्र आत्मिक पराक्रम से शून्य ऐसा निर्बल पुरुष इस राज्य गद्दी पर पाया है । ऐसा कापुरुष हमारा क्या बिगाड़ सकता है ? आप क्यों घबराते हैं ? इस बेचारे को तो अभी यह भी मालूम नहीं कि उसे राज्य प्राप्त हुआ है । वह स्वयं अनन्त बल-वीर्य और समृद्धि से पूर्ण है, इसका भी उसे भान नहीं। बेचारा तत्त्वतः यह भी नहीं जानता कि वह कौन है और उसका स्वरूप क्या है ? हमारे चोर-लुटेरे भाई इसके राज्य को दबा कर इसके आत्मधन को लूटने वाले हैं, इसका भी इसे पता नहीं है । वह तो हमें अपना हितेच्छु, सम्बन्धी और बन्धु ही मानता है । इतना ही नहीं, वह तो हमें अपना स्वामी और अपने से श्रेष्ठ समझता है। अतः हे देव ! यदि आपके मन में किंचित् भी व्याकुलता हो तो उसे निकाल दीजिये और राज्य में उत्सव मनाने की आज्ञा दीजिये जिससे कि हमारे सभी लोग प्रसन्न हों।
[३८८-३६५] विषयाभिलाष मन्त्री की बात सुनकर महामोह राजा को अत्यानन्द हुआ और सभा में उपस्थित सभी लोगों को भी आनन्द हुआ। महामोह राजा ने प्रसन्न होकर चारों तरफ उत्सव मनाने की आज्ञा दे दी। विषयाभिलाष मन्त्री कथित निकृष्ट राज्य के वृत्तान्त को सुनकर महामोह राज्य के समस्त अनुचर नाचने-गाने
और आनन्दातिरेक से अपने हर्ष को विविध भांति प्रकट करने लगे। हर्षित होकर बधाइयां बांटने लगे । कहने लगे--जिस राजा ने अनन्त रत्नों से परिपूर्ण राज्य प्राप्त किया है वह तो हमारे हाथ में है, हमारे वश में है* वह तो और अपने लोगों को जानता भी नहीं । अतः हे भाइयों ! यह तो बहुत अच्छा हुआ। इस निकृष्ट राजा का राज्य तो हमारे लिए अत्यन्त सुखदायक हया। इस खुशी में प्रायो, हम सभी आज अत्यन्त प्रानन्द से खायें, पियें, गायें और नाचें। [३६६-४००]
महामोह राजा के सभी नगर और गांवों में, जो भीलों की बस्तियों जैसे थे, प्रसन्नता की लहर फैल गयी । बधाइयाँ बांटी जाने लगीं । लोग अपनी दुकानें सुन्दर ध्वज-पताकाओं से सजाने लगे। घातीकर्म नामक चोर अपने मन में यह जानकर
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