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________________ प्रस्ताव ६ : समुद्र से राज्य-सिंहासन १६१ अतएव में अपने विशेष मन्त्री सुबुद्धि से परामर्श कर, उसका सहयोग प्राप्त कर कुमार का वध करवा डालू, ऐसा राजा ने अपने मन में विचार किया। । तत्पश्चात् राजा नीलकण्ठ ने शीघ्र ही सुबुद्धि मंत्री को एकान्त में अपने पास बुलवाया और अपना गूढ अभिप्राय उसे बतलाया। सुबुद्धि मंत्री कुमार को भली प्रकार जानता था और उसके पवित्र सद्गुरणों से रंजित होकर उससे प्रेम रखता था। राजा का निर्णय सुनकर उसके हृदय पर वज्र गिरने जैसा झटका लगा, पर राजा का निर्णय स्पष्ट और टाला न जा सकने वाला समझकर उसने राजा की हाँ में हाँ मिला दी । मंत्री ने राजा से कहा-'हे देव ! आपके मन में जैसा ठीक लगे वैसा ही करिये । महान पुरुष बुद्धि को अयोग्य लगे ऐसे कार्य में कभी भी प्रवृत्ति नहीं करते।' फिर हरिकुमार को मारने का दृढ़ निश्चय कर राजा और मंत्री अपनेअपने स्थान पर गये। [२३७-२४१] मन्त्री सुबुद्धि को दक्षता पवित्र बुद्धि वाला, वयोवृद्ध, अनुभवी सुबुद्धि मंत्री राजा की आज्ञा को सुनकर जब घर आया तो सोचने लगा कि राजा की भोग सुख की आसक्ति को धिक्कार है । उसके इस अज्ञानजनित निर्णय को भी धिक्कार है। ऐसी राज्य-लम्पटता भी सचमुच निन्दनीय एवं धिक्कार योग्य है । राज्य के सम्बन्ध में अनेक अच्छे बरे विचार आते ही रहते हैं, यह सत्य ही है। एक समय हरिकमार इन महाराजा को प्राणों से भी अधिक प्यारा था । यह सर्वगुणनिधान होते हुए भी महाराजा का जंवाई है और उनकी सगी बहिन का एक मात्र पुत्र/भाणेज भी है। इनके आश्रय में रहने वाला कुमार पाज बिना कारण राजा का द्वेषभाजन हो गया है। राजा की दृष्टि में यह उनका महान शत्रु और वध योग्य हो गया है । अहा! भोग और तृष्णा की कामनाओं से जो अन्धापन पाता है, वही ऐसी भयंकर परिस्थितियों का कारण बनता है। इसके अतिरिक्त और कोई कारण नहीं । अहा ! ऐसा महान पवित्र, विनयशील, अलोभी, शुद्धात्मा हरिकुमार जो पाप से डरने वाला है, क्या वह कभी स्वप्न में भी राज्य-हरण का विचार कर सकता है ? राज्य के लोभ से महाराजा नीलकण्ठ इस समय मूर्ख, बुद्धिविकल और विचारहीन बन गये हैं, इसमें कुछ भी संदेह नहीं । इस पवित्र शुद्धात्मा रत्न जैसे उज्ज्वल हरिकुमार का अब किसी भी उपाय से मुझे रक्षण करना चाहिये । [२४२-२४७] ___ मंत्री ने अपने हृदय में कुमार के रक्षण का संकल्प कर अपने एक विश्वासी भृत्य दमनक को सब बात अच्छी तरह समझाई। राजा के साथ जो बात हुई वह सब और भविष्य में क्या होने वाला है वह सब समझाकर गुप्त रूप से कुमार के पास दमनक के द्वारा ये समाचार भिजवा दिये* और यह भी कहलाया 'कुल * पृष्ठ ५७४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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