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________________ प्रस्ताव ६ : निमित्तशास्त्र : हरिकुमार-मयूरमंजरी सम्बन्ध १५१ प्रथम आय में यदि श्वान, ध्वज या वृषभ आये तो चिन्ता किसी जीवित प्राणी के सम्बन्ध में है, ऐसा समझना चाहिये । यदि प्रथम आय में सिंह या वायस आये तो चिन्ता मूल स्थान (किसी नगर, ग्राम आदि) के बारे में है और यदि प्रथम प्राय में धूम्र, हस्ति या खर आये तो चिन्ता किसी धातु के सम्बन्ध में है ऐसा समझना चाहिये । [१६८/ यहाँ प्रथम प्राय में ध्वज पाया है अतः मयूरमंजरी किसी जीवित प्राणी के सम्बन्ध में सोच रही है, ऐसा प्रतीत होता है। उस प्राय के काल और समय आदि की गणना करने से वह प्राणी पुरुष होना चाहिये। मेरी गणना के अनुसार वह राजपुत्र है और उसका नाम हरि है। यहाँ धूम्र पर खर प्राय आई है अत: उस पुरुष की प्राप्ति अवश्य होगी, क्योंकि निमित्तशास्त्र में कहा गया है कि ध्वज पर खर आवे तो स्थान बनाता है, धूम्र पर खर आवे तो अवश्य ही लाभ की प्राप्ति होती है और सिंह पर खर आवे तो नाश होता है। अन्य किसी भी आय पर खर आने से मध्यम फल की प्राप्ति होती है । [१६६) लाभ कितने समय में मिलेगा, इसका पता तीसरी पाय से चलता है । यहाँ तीसरी आय में वायस है, अतः मेरी गणनानुसार लाभ की प्राप्ति आज ही होनी चाहिये । निमित्तशास्त्र के अनुसार यदि तीसरे पद में ध्वज या हस्ति की आय हो तो फल प्राप्ति एक वर्ष में होती है, वृषभ या सिंह की आय हो तो एक माह में, श्वान या खर की आय हो तो एक पक्ष में और धूम्र या वायस की आय हो तो एक दिन में (उसी दिन) फल मिलता है। [१७०] भाई ! मेरी बात सुनते ही रानी की चिन्ता दूर हई। उसे मेरी बात पर विश्वास हुआ और समझ गई कि इच्छित जामाता (जंवाई) का लाभ शीघ्र ही प्राप्त होगा । अतः मेरे पाँव छुकर रानी शिखरिणी बोली-भगवति ! आपने मुझ पर बड़ी कृपा की। आपने जो कहा वह सत्य है। मेरी पुत्री मयूरमंजरी की प्रिय सखी लीलावती अभी-अभी कह रही थी कि आज प्रात: हरिकुमार लीलासुन्दर उद्यान की ओर अपने मित्रों के साथ जा रहा था तब मंजरी ने उसे देखा था। मंजरी काफी समय तक उसे एक-टक देखती रही, पर किसी भी संयोग से कुमार की दृष्टि मयूरमंजरी पर नहीं पड़ी, अर्थात् कुमार ने उसे नहीं देखा। लीलावती यह भी कह रही थी कि कुमार के प्रति उसके मन में प्रेमाभिलाषा जाग्रत हुई, पर यह प्रेम पूरा हो सकेगा या नहीं ? इसी चिन्ता में उसकी यह अवस्था हुई है। अब आपने अपने ज्ञान चक्षु से जो कुछ देखा है, वैसा ही इन दोनों का मिलन भी हो जाये, ऐसा करने की कृपा भी आप ही करें । भाई ! मैंने रानी से कहा कि कुमार का क्या अभिप्राय है इसका मुझे पहले पता लगाने दें। इस पर रानी बोली कि आप तो सब जानती हैं, इस विषय में आपको अधिक क्या कहूँ ? फिर मैंने चित्रपट पर मयूरमंजरी की छवि चित्रित की । वह चित्र लेकर मैं लीलासुन्दर उद्यान में आई। वहाँ हरिकुमार को देखकर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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