SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 798
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ प्रस्ताव ५ : नर-नारी शरीर-लक्षण १७ बल को बढ़ाने के कारण हैं, इनसे सत्त्व अधिक शुद्ध होता है और प्राणी की प्रगति होती है। जैसे शीशे पर सोडे का कपड़ा फेरने से एवं हाथ फैरने से वह अधिक साफ होता है वैसे ही विशुद्धि के उपायों से सत्त्व जितने अंश में अशुद्ध होता है उतने ही अंश में फिर से विशुद्ध हो जाता है। उपरोक्त विशुद्धि के उपाय अन्तरंग व्यवहार में लगी चिकनाई को दूर कर देते हैं और इनका पुनः-पुनः सेवन (प्रयोग) करने से वे अन्तरात्मा को रुक्ष बना देते हैं ।* आत्मा रुक्ष होने से उसमें संचित मैल निकल जाता है, जिससे लेश्या (आत्मपरिणति) शुद्ध होती है, उसी को यहाँ सत्त्व कहा गया है । सत्त्व शुद्ध होने पर प्रशस्त लक्षणों के गुण स्वतः ही पूर्णरूपेण प्रकट होते हैं और अपलक्षणों के दोष अपना अधिक प्रभाव नहीं दिखा सकते । भाई वामदेव ! समस्त गुणों का आधारभूत उत्तम सत्त्व जिन भावों (उपायों प्रयोगों) से वृद्धि प्राप्त कर सकता है, ऐसे भाव विद्यमान हैं, यह बात अब तेरी समझ में आ गई होगी। [१४७-१५३] हे अगहीतसंकेता ! मित्र विमल ने आंतरिक बल के विषय में मुझे इतना बताया, पर मेरी समझ में तो कुछ भी नहीं आया। फिर भी मेरी बहिन माया जो मेरे पास थी, उसके प्रभाव से मैंने हाँ कह दिया और सिर हिलाते हुए कहाकुमार ! तुम्हारी बात ठीक है, इससे अभी मेरे मन का संशय नष्ट हो गया है । अब तुम स्त्री के लक्षणों का वर्णन करो। साथ ही स्त्री-पुरुष के इस जोड़े को देख कर तुझे जो इतना विस्मय हुआ है, वे तुझे इन लक्षणों के आधार पर कैसे लगते हैं वह भी बतला दो। [१५४-१५६] उत्तर में विमल बोला-सूनो, इस युगल में से पुरुष में जो लक्षण दिखाई दे रहे हैं उनसे वह कोई चक्रवर्ती होना चाहिये और स्त्री के लक्षणों को देखते हुए वह किसी चक्रवर्ती की स्त्री होनी चाहिये । ऐसे सुन्दर लक्षणों से युक्त श्रेष्ठतम युगल को देखकर ही मुझे विस्मय हुआ था। हे भद्र ! अब स्त्री के लक्षणों का वर्णन कर रहा हूँ। [१५७-१५८] मैंने (वामदेव) कहा ----सुनाओ, तब विमलकुमार कहने लगा। स्त्री-लक्षण पूरे शरीर का प्राधा भाग मुंह है या यों कहें कि मुंह ही शरीर का आधार है, अत: वह ही पूरा शरीर है तो अत्युक्ति नहीं होगी। मुख से भी नाक श्रेष्ठ (विशेष) स्थान रखता है और नाक से भी आँखें अधिक श्रेष्ठतम (उपयोगी और शुभ लक्षण-सूचक) हैं। [१५६] जिस स्त्री के पाँव में चक्र, पद्म, ध्वजा, छत्र, स्वस्तिक और वर्धमान का चिह्न हो वह स्त्री राजा की रानी है या होने वाली है, ऐसा समझना। [१६०] * पृष्ठ ४७८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy