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________________ उपमिति-भव-प्रपंच कथा सामान्यत: भाग्यशाली पुरुषों के वक्षस्थल, ललाट और मुख विस्तृत होते हैं, नाभि, सत्व (अन्तरंग बल) और स्वर गम्भीर होते हैं तथा बाल, दांत और नाखून छोटे हों वे सुखकारक होते हैं । जिनका गला, पीठ, जांघे और पुरुष चिह्न (लिंग) छोटा हो वे पूजनीय होते हैं। भाग्यशाली मनुष्यों की जीभ और हाथ-पांव के तले लाल होते हैं। दीर्घायुषी व्यक्तियों के हाथ और पैर विशाल होते हैं। चिकने दांत वाले को सुस्वादु भोजन मिलता है अथवा सदाचारी होता है। स्निग्ध अांखों वाला पुरुष सौभाग्यशाली होता है। अधिक लम्बा, छोटा, मोटा या काला पुरुष निन्दनीय होता है । जिनकी चमड़ी, रोंये, दांत, जीभ, बाल और अांखें अधिक रुक्ष हों वे भाग्यशाली नहीं होते हैं । [१३४-१३८] हे सौम्य ! जिस पुरुष के ललाट में ५ रेखायें पड़ती हों तो उसकी उम्र १०० वर्ष, ४ रेखायें पड़ती हों तो ६० वर्ष, ३ रेखायें पड़ती हों तो ६० वर्ष, २ रेखायें पड़ती हों तो ४० वर्ष और एक रेखा वाले की आयु ३० वर्ष होती है । [१३६-१४०] धन का आधार हड्डियों पर, सुख का आधार मांस पर, भोग का आधार चमड़ी पर, स्त्री-प्राप्ति का अाधार प्रांखों पर, वाहन-प्राप्ति का प्राधार गति पर, शासक (आज्ञा चलाने) का आधार स्वर पर और सब विषयों का आधार प्रांतरिक बल में स्थित है। [१४१] गमन गति (चलने के तरीकों) से शरीर का वर्ण (रंग) विशेष आवश्यक है, रंग से स्वर अधिक आवश्यक है और स्वर से भी अधिक आवश्यक अान्तरिक बल है; क्योंकि सब विषयों का अन्तिम आधार उसी सत्त्व पर आधारित है। पुरुष का जैसा रंग होता है वैसा ही उसका रूप होता है, जैसा रूप वैसा ही मन, जैसा मन वैसा ही सत्त्व और जैसा उसका सत्त्व अर्थात् आन्तरिक बल होता है वैसे ही उसमें गुरण होते हैं। [१४२-१४३] हे भद्र ! इस प्रकार मैंने पुरुष के लक्षणों का संक्षेप में वर्णन किया, अब स्त्री के लक्षणों का वर्णन करता हूँ जिसे ध्यान से सुनो। [१४४ ] सत्त्व-वर्धन के उपाय यहाँ मैंने विमलकुमार से पूछा-मित्र ! तुमने कहा कि सर्व लक्षणों का आधार अत्यन्त निर्मल सत्त्व (आत्मिक बल) है और अन्त में उसका विशेष वर्णन किया है, तो क्या यह आत्मिक-बल जैसा और जितना पहले होता है उतना ही रहता है या इसी जन्म में किसी प्रकार उसमें वृद्धि और विशुद्धता भी बढ़ सकती है ? [१४५-१४६] उत्तर में विमल बोला-सुनो, निम्न उपायों से प्रांतरिक-बल में वृद्धि भी हो सकती है। ज्ञान, विज्ञान, धैर्य, स्मृति और समाधि ये प्रांतरिक-बल को बढ़ाने के उपाय हैं । ब्रह्मचर्य, दया, दान, निःस्पृहता, तप और उदासीनता ये सब प्रांतरिक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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