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________________ उपमिति भव-प्रपंच कथा भाई वामदेव ! पुरुषों के लक्षण लाखों ग्रन्थों में [ लाखों पद्यों में] विस्तार सेवरित हैं, उनका संक्षेप में वर्णन करने में कौन समर्थ हो सकता है ? वैसे ही स्त्रियों के लक्षण भी अत्यन्त विस्तृत हैं, उनके वर्णन का अन्त कौन पा सकता है ? कौन उन्हें सम्पूर्ण रूप से अपने ध्यान में ला सकता है ? तुझे इन लक्षणों को जानने की अत्यधिक उत्सुकता है तो स्त्री और पुरुष के शरीरों के लक्षण मैं तुम्हें संक्षेप में बताता हूँ, उन्हें ध्यानपूर्वक सुनो । [८२-८४ ] १२ मैं [ वामदेव ] ने कहा- बड़ी कृपा । ऐसा कहकर जब मैंने अपनी इच्छा प्रकट की तब विमल ने बात आगे चलायी : पुरुष - लक्षरण पाँव का तल [ चरण] रक्तिम, स्निग्ध और सीधा हो, कमल जैसा मनोहर कोमल और सुश्लिष्ट हो तो उसे प्राज्ञजनों ने प्रशंसनीय कहा है । पुरुष के चररण- तल में चन्द्र, वज्र, अंकुश, छत्र, शंख, सूर्य आदि के चिह्न हों तो वह पुरुषोत्तम और भाग्यशाली होता है । यदि चन्द्र आदि चिह्न पूरे न हों और अस्पष्ट दिखाई देते हों तो वह पुरुष अपनी अवस्था में भोग भोगने में भाग्यशाली होता है । जिसके पदतल में गधा, सूअर या सियार के निशान दिखाई देते हों तो वह मनुष्य निर्भागी और दुःखी होता है । [ ८५-८८ ] विमल - पुरुष - शरीरस्थ लक्षणों का वर्णन कर रहा था इसी बीच मैं [ वामदेव ] उससे पूछ बैठा - मित्र ! तुम शरीर के प्रशस्त लक्षणों का वर्णन कर रहे थे इसी बीच लक्षणों का वर्णन क्यों करने लग गये ? विमल - इसका कारण सुनो। मनुष्य को देखने मात्र से उसके शुभाशुभ लक्षण स्वतः ही दृष्टिपथ में आ जाते हैं । इसी कारण लक्षण दो प्रकार के प्रतिपादित किये गये हैं :- १. शुभ लक्षण और २. अशुभ लक्षण । शरीर संस्थित प्रशस्त और अप्रशस्त दो प्रकार के चिह्न [ लक्षण ] सुख और दुःख के संकेतकारक होते हैं । इसीलिए विद्वानों ने ये लक्षण दो प्रकार के माने हैं । भद्र ! इसी कारण प्रस्तुत पुरुष के लक्षणों में अपचिह्नों का वर्णन भी युक्तिसंगत है । मैं [ वामदेव ] - कुमार ! प्रशस्त और अप्रशस्त चिह्नों की शाब्दिक व्युत्पत्ति की दृष्टि से परिहास में ही मैं बीच में पूछ बैठा था । वस्तुतः तो दोनों ही लक्षणों का वर्णन कर तुम मेरे ऊपर द्विगुणित अनुग्रह कर रहे हो । अतः तुम इन लक्षणों का सांगोपांग वर्णन-क्रम चालू रखो । [ ८६-६३] विमल ने पुनः वर्णन प्रारम्भ कर दिया- मित्र ! जिन मनुष्यों के नाखून उन्नत, विस्तृत, लाल, चिकने और शीशे की तरह चमकते हुए होते हैं वे भाग्यशाली होते हैं और उन्हें धन, भोग और सुख प्राप्त होता है । यदि नाखून सफेद हों तो वह व्यक्ति भीख मांगकर गुजारा करता है । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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