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प्रस्ताव ५ : नर-नारी शरीर-लक्षण
हैं, राजागण (श्रेष्ठ मनुष्य) परिभ्रमण करते हैं, देव भी संभव हैं, सिद्ध रमण करते हैं, पिशाच घूमते हैं, भूत आवाज करते हैं, किन्नर गाते हैं, राक्षस फिरते हैं, किम्पुरुष रहते हैं, महोरग विलास करते हैं, गन्धर्व लीला करते हैं और विद्याधर क्रीडा करते हैं । अतः जिस ओर से यह ध्वनि आ रही है उस ओर आगे जाकर देखना चाहिये कि ये आवाजें किस की हैं ?
विमल ने मेरी बात मान ली और हम दोनों उस तरफ चले जिधर से वह मधुर ध्वनि पा रही थी। हम थोड़े ही आगे बढ़े होंगे कि हमें भमि पर कुछ पदचिह्न दिखाई दिये । पद-चिह्न विशेषज्ञ विमल बोला---मित्र वामदेव ! ये पद-चिह्न किसी मनुष्य-युगल (स्त्री-पुरुष) के दिखाई देते हैं।
भाई ! देखो, बालू में जो एक के पग के निशान बने हैं वे किसी कोमल और छोटे पांव के हैं । पगतली की सूक्ष्म सुन्दर रेखायें भी बालू में स्पष्ट दिखाई दे रही हैं। अन्य के पद-चिह्नों में चक्र, अंकुश और मत्स्य आदि के चिह्न स्पष्ट दिखाई दे रहे हैं तथा वे दूर-दूर हैं। देवताओं के पाँव तो लगते नहीं, क्योंकि वे भूमि से चार अंगुल ऊंचे रहकर चलते हैं और साधारण मनुष्य के पाँवों में भी ऐसे चिह्न नहीं होते । [७६-८१]
अतः मित्र वामदेव ! जिस सुन्दर युगल के ये पदचिह्न हैं वह कोई असाधारण युगल होना चाहिए ।
उत्तर में मैंने कहा-कुमार ! तुम्हारा कहना सत्य ही होगा, चलो हम आगे जाकर इसकी जांच करें।
फिर हम कुछ आगे बढ़े । आगे बढ़ने पर* हमने सघन वृक्षों की झाड़ियों से घिरा हुआ एक लतामण्डप देखा । लतामण्डप के एक छिद्र से हमने झांक कर देखा। रति और कामदेव के रूप को भी तिरस्कृत करने वाले एक सुन्दर स्त्री-पुरुष के जोड़े को हमने एक-दूसरे में एकमेक हुए देखा । विमल तो इन दोनों स्त्री-पुरुषों को पाँव से सिर तक घूर-चूर कर देखने लगा, पर वे दोनों ऐसे रस में लीन थे कि उन्होंने हमें नहीं देखा । हम जब थोड़े पीछे हटे तब विमल बोला-मित्र यह स्त्री-पुरुष का जोड़ा कोई साधारण मनुष्यों का नहीं है, क्योंकि इनके शरीर में बहुत से विशिष्ट लक्षण दिखाई देते हैं।
__ मैंने (वामदेव) पूछा-भाई ! स्त्री-पुरुष के शरीर पर कैसे लक्षण होते हैं ? वह मुझे बता। मुझे स्त्री-पुरुष लक्षण जानने की बहुत उत्सुकता है, अत: पहले मुझे वही बता। नर-नारी के शारीरिक लक्षण
फिर विमल स्त्री-पुरुष के लक्षण बताने लगा।
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