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प्रस्ताव ४ : रिपुदारण का गर्व और पतन
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झक कर मेरे शरीर पर ताल ठोंकने लगे और चक्रवर्ती को अधिक प्रहसन (नाटक) दिखाने लगे तथा जोर-जोर से हँसने लगे। मेरे नगर के अनेक लोग यह नाच देखने इकट्ठे हुए थे, वे तो स्पष्ट कहते थे कि मेरे जैसा दुरात्मा इसी प्रकार के अपमान, मार और तिरस्कार के योग्य ही है । अनन्तर योगेश्वर रास मण्डल (गाने वालों) के घेरे के बीच पाया और सभी को सुनाते हुए निम्न पद बोलने लगा :
नो नतोऽसि पितदेवगरण न च मातरं, कि हतोऽसि ! रिपुदारण ! पश्यसि कातरम् । नृत्य नृत्य विहिताहति देव पुरोऽधुना, निपत निपत चरणेषु च सर्वमहीभुजाम् ।। ४४२ ।।
यो हि गर्वमविवेक भरेण करिष्यते इत्यादि हे रिपुदारण ! तू ने कभी भी माता-पिता या देवता को झुककर नमस्कार नहीं किया, क्या तू मर गया है ? क्या तू कायर बन गया है ? नाचो ! रिपुदारण, नाचो !! हमारे देव तपन के चरणों में गिर-गिर कर और सभी राजाओं के चरणों में गिर-गिर कर बार-बार नाचो।
योगेश्वर उपर्युक्त कविता बोल रहा था और उसके साथी उसकी प्रथम पंक्ति (टेर) बार-बार बोलने लगे और ताल आने पर मुझे पैरों की खड़ाउनों से जोरजोर से मारने लगे।] पिगरण का तिरस्कार : मरण
तपन चक्रवर्ती के समक्ष योगेश्वर इस प्रकार मुझे नचा रहा था और मेरा तिरस्कार कर रहा था। उस समय मुझ में मूढ़ता और उन्माद बढ़ता गया और मुझे मेरा जीवन खतरे में लगने लगा । फलस्वरूप मैंने दीनता पूर्वक अनेक नाच किये। अन्त में भंगियों और चमारों के पैरों में भी पड़ा एवं अत्यन्त सत्वहीन नपुंसक जैसा बन गया । के
___उस समय तपन चक्रवर्ती ने मेरे ही छोटे भाई कुलभूषण को सिद्धार्थपुर राज्य की गद्दी पर अभिषिक्त किया। हे अगृहीतसंकेता ! मुझे मक्कों और लातों से इतना मारा गया था कि मेरा शरीर चूर-चूर होकर नष्ट प्राय: की अवस्था को प्राप्त हो गया । फलतः मेरे पेट में से खून निकलने लगा और मैं अत्यन्त दुःखी एवं सन्तप्त हो गया। भवितव्यता द्वारा दी गई रिपुदारण के जन्म में चलने वाली एकभववेद्या गोली अब समाप्त हो चुकी थी, अतः उसने अब मुझे दूसरी गोली दी। नरक-यातना : संसार-परिभ्रमण
___ इस गोली के प्रभाव से मैं पापिष्ठ निवास (नरक) नगरी के महातमःप्रभा नामक सातवें उपनगर में उत्पन्न हुआ । मैंने वहाँ रहने वाले पापिष्ठ कुलपुत्र का रूप * पृष्ठ ४६८
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