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प्रस्ताव ४ : चारित्रधर्मराज का परिवार
विमर्श-भाई प्रकर्ष ! सचमुच ही यह संतोष कोई मूल (बड़ा) राजा नहीं है, किन्तु चारित्रधर्मराज की सेना का एक महारथी है। वास्तविकता यह है कि यह सन्तोष अत्यधिक शूरवीर, नीति-न्याय-तत्पर, दक्ष और सन्धि-विग्रह का विशेषज्ञ है। इसीलिये चारित्रधर्मराज ने इसे अपनी और राजतन्त्र की सुरक्षा हेतु तन्त्रपाल नियुक्त कर रखा है। महाराजा की विशेष सेना और युद्ध सामग्री को लेकर यह कोटवाल की भांति अत्यन्त आनन्दपूर्वक जहाँ-तहाँ घूमता रहता है। एक समय इसने किसी स्थान पर स्पर्शन यादि को देखा (स्पर्शन का वर्णन तीसरे प्रस्ताव में आ चुका है। और अपनी शक्ति से उन्हें हराकर कुछ मनुष्यों को निर्वृत्तिनगर में भेज दिया। चारित्रधर्मराज की पूरी सेना ने इस युद्ध में इसकी सहायता की। लोगों के मुख से जब महामोह आदि राजाओं ने इस युद्ध के समाचार सुने तब उन्हें लगा कि अपने आश्रित स्पर्शन, रमन आदि व्यक्ति यदि इस प्रकार मार खाते जायेंगे तो हमारी शक्ति क्षीण होती जायेगी, अतः युद्ध करने की इच्छा से वे निकल पड़े। भाई ! महामोह मादि राजाओं ने सन्तोष की वीरता को देखकर अपनी बुद्धि के अनुसार यह मान लिया कि वह कोई मूल नायक (बड़ा राजा) है। मनुष्य जितना देखता है उतना ही जानता है, काले सर्प का पेट अन्दर से सफेद होता है, पर लोग उसका ऊपर का भाग ही देखते हैं. अतः वे उस सांप को काला ही कहते हैं। लोगों की बातें सुनकर मोह राजा सन्तोष को ही स्पर्शन प्रादि को घातक मानता है, (वास्तव में यह सन्तोष हो स्पर्शन, रसन प्रादि को अच्छी तरह पछाड़ता है और उनसे त्राहि-त्राहि करवाता है) अतः मोह राजा को जितना क्रोध सन्तोष पर है, उतना अन्य किसी पर नहीं । इसीलिये सन्तोष को मार भगाने की इच्छा से * महामोहादि राजा अपने-अपने स्थान से अपनी सेनायें लेकर युद्ध करने निकल पड़े हैं । इस युद्ध के लिये योग्य स्थान चित्तवृत्ति पटवी में अब तक महामोह और संतोष में अनेक युद्ध हो चके हैं, पर अभी तक किसी की भी अन्तिम हार-जीत का निर्णय नहीं हो सका है। कभी तन्त्रपाल संतोष अपने शत्रु की पूरी सेना को हराकर उसकी सेना में घबराहट पैदा कर देता है तो कभी महामोह आदि राजा अपना प्रभाव दिखाकर संतोष को पटकी मारते हैं। हे कमलनेत्र भाई ! इस प्रकार एक दूसरे के क्रोध के कारण दोनों सेनाओं का युद्ध अनन्त काल से चल रहा है, पर अन्त में क्या होगा? यह मैं नहीं बता सकता । इस प्रकार मैंने तन्त्रपाल संतोष के दर्शन भी तुझे करा दिये हैं और उसकी वास्तविकता भी बता दी है. जिसके विषय में तुझे अत्यन्त कौतूहल था। [२४-२५४] संतोष की पत्नी निष्पिपासिता
भाई प्रकर्ष ! इस संतोष के पास ही एक कमलनयना सुन्दरानना युवा बाला बैठी है, वह इसकी पत्नी निष्पिपासिता है। इस संसार में पाँचों इन्द्रियों के शब्द, रूप, रस, स्पर्श और गन्ध आदि भिद्ध-भिन्न विषय हैं। संसारी प्राणी इन
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