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________________ उपमिति-भव-प्रपंच कथा ६. यह नौवां पुरुष सामायिक व्रत है। यह सांसारिक परभावों (विभावों) का त्याग करवाकर स्वाभाविक प्रशमभावों में अनुरक्त बनाता है। १०. दसवां पुरुष देशावकाशिक व्रत है। छठे व्रत में जीवन भर के लिये दिशा आदि की जो मर्यादा की हो उसे भी यहाँ पारमित (सीमित) करवाता है। ११. ग्यारहवां पुरुष पौषध व्रत है। यह सामायिक व्रत की सीमा को अधिकाधिक विस्तृत करने का दृढ़ निश्चय करवाता है। १२. यह बारहवां पुरुष अतिथि संलिग व्रत है । वत्स! यह जैनपुर के गहिधर्मीजनों को अतिथियों का सम्मानपूर्वक उपयोगी पदार्थों को प्रदान करने को प्रेरित कर, कालिमा का नाश कर मन को पवित्र बनाता है। भाई प्रकर्ष ! गहस्थधर्म नामक यह छोटा राजकुमार जैनपुर में प्राणियों को जितनी आज्ञा देता है, उसमें से अपनी शक्ति सामर्थ्य के अनुसार जो प्राणी जितने अंश में उन अाज्ञाओं का पालन करता है, उन्हें उतने ही अंश में यह फल भी प्रदान करता है। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है। [१६३-१९८] सद्गुणरक्तता पुत्रवधु वत्स ! गृहस्थधर्म राजकुमार के पास में अपनी आँखों में हर्ष और जिज्ञासा पूरित जो नववधुसी बाला बैठी है, वह गृहस्थधर्म की पत्नी सद्गुणरक्तता है। मुनियों को इस युवती पर बहुत स्नेह है और वह भी प्रतिदिन बड़ों का विनय करने को तत्पर ही रहती है। उसे भी अपने पति गहस्थधर्म से उत्कट प्रेम है । ये दोनों राजकुमार और इनकी पत्नियाँ जैनपुर के सभी लोगों को स्वभाव से ही निरन्तर प्रानन्द देते रहते हैं । [१६६-२०१] मामा विमर्श ने कुछ विश्राम लेने के लिये यहाँ अपना वर्णन बन्द किया। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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