SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 727
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ६१४ उपमिति-भव-प्रपंच कथा अभूतपूर्व और नया-नया है तथा जानने लायक है, इसलिये मुझ पर कृपा कर प्रत्येक के विषय में विस्तार से स्पष्टतः बताइये । विमर्श- भाई ! तुझे यह सब कुछ जानने समझने का विशेषतः अत्यधिक कौतूहल है तो तू ध्यान देकर श्रवण कर । इस विवेक पर्वत का आधारभूत सात्विक-मानसपूर वास्तव में ज्ञानादि अन्तरंग रत्नों गुणों की खान है। वत्स ! यद्यपि यह अनेक प्रकार के दोषों से परिपूर्ण भवचक्र के बीच में बसा हगा है, फिर भी इसका स्वरूप इतना श्लाघनोय है कि दोष इसको छ भी नहीं सकते। भवचक्र में रहने पर भी यह दोष-मुक्त है। भैया ! भवचक्र में रहने वाले भाग्यहीन प्राणी अपने पास ही बसे हुए इस सुन्दर सात्विक-मानसपुर को उसके वास्तविक रूप में देख ही नहीं पाते। इसके अन्तर्गत निर्मलचित्त आदि अनेक छोटे-छोटे नगर और पुर हैं जो सात्विक-मानसपुर के अधीनस्थ हैं और उन उपनगरों की यह राजधानी है। तुझे स्मरण होगा कि राजसचित्त नगर का राज्य कर्मपरिणाम राजा ने रागकेसरी को और तामसचित्त नगर का राज्य द्वषगजेन्द्र को सौंपा था और महामोह की प्राज्ञा सर्वत्र फैलाई थी। पर, कर्मपरिणाम महाराजा ने सात्विक-मानसपूर या उसके अधीनस्थ नगरों का राज्य किसी को नहीं सौंपा। इस राज्य की आमदनी का उपयोग वह स्वयं करता है और उसका कुछ भाग शुभाशुभ आदि श्रेष्ठ राजाओं में बांटता है। इसीके फलस्वरू सात्विक-मानसपुर और उसके अधीनस्थ नगरों पर महामोह आदि राजाओं और उनके सेवकों का कोई वश नहीं चलता। यह सात्विक-मानसपुर सम्पूर्ण जगत् का सारभूत है, सर्व प्रकार के उपद्रवों से रहित है, सर्व प्राणियों में अनेक प्रकार का आह्लाद उत्पन्न करने वाला और बाह्य मनुष्य के मन को अपनी और आकर्षित करने वाला है । भैया ! संक्षेप में सात्विक-मानसपुर के सम्बन्ध में तुझे बताया जो तेरा समझ में आया होगा । अब इस नगर में रहने वाले लोग कैसे हैं, इसका वर्णन करता हूँ, सुन । (२१-२८] सात्विक-मानसपुर के निवासी इस सात्विक-मानसपुर में जो बाह्य लोग रहते हैं वे शूरवीरता प्रादि गुणों के धारक हैं । जो बाह्य लोग इस नगर में अन्य स्थानों से प्राकर रहते हैं वे इस नगर के माहात्म्य के कारण विबुधालय (देवलोक) में जाते हैं। इसके अतिरिक्त यहाँ रहने वाले लोगों की दृष्टि के सन्मुख विवेक पर्वत या जाता है, क्योंकि वह सात्विकमानसपुर में ही आया हया है। इस नगर में रहने वाले लोगों में से जो इस विवेक पर्वत को देखकर उस पर चढ़ते हैं, उन्हें जैनपुर प्राप्त होता है और वे वास्तविक सच्चे सुख के भाजन बनते हैं । एक तो इस नगर के प्रभाव से लोग स्वभाव से ही श्रेष्ठ एवं सुन्दर होते हैं, फिर विवेक पर्वत के शिखर पर चढ़ने (रहने) से और भी अघिक प्रशस्त तथा सुन्दर हो जाते हैं। पुनश्च, वत्स ! भवचक्र निवासी प्राणियों में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy