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उपमिति-भव-प्रपंच कथा .
गई । अरे भाई ! तेरी ऐसी गति (अवस्था) हो जाने पर अब मैं जिन्दा क्यों हूँ ? अब मैं जीकर क्या करूगा ? हाय मैं मर क्यों नहीं गया ? [२४-३०]
सेठ इस प्रकार विलाप कर ही रहा था कि विषाद अपने अनेक रूप धारण कर उसके स्वजन-सम्बन्धियों के शरीर में प्रविष्ट हो गया । विषाद की शक्ति से वासव के स्वजन-सम्बन्धी भी हाहाकार करने लगे, जोर-जोर से रोने लगे, विलाप करने लगे । क्षणभर पहले जो घर हर्ष के प्रावेश में कल्लोल कर रहा था वह
आनन्दरहित हो गया और लोग शाक से विह्वल एवं दीन जैसे दिखाई देने लगे। स्त्रियाँ और नौकर भी रने लगे, जिससे चारों और शोक तथा विषाद फैल गया। यह देखकर प्रकर्ष को कौतुक हुआ और उसने पूछा-मामा ! इस वासव के घर में अचानक विपरीत नाटक होने लगा, इसका क्या कारण है ? ऐसा आश्चर्यजनक परिवर्तन कैसे हो गया ? [३१-३४]
विमर्श- भाई प्रकर्ष ! मैंने तुम्हें पहले ही बताया था कि इन बाह्य लोक के मनुष्यों का सम्पूर्ण आधार अन्तरंग मनुष्यों पर आधारित है । देख, यहाँ पहले तो हर्ष ने प्राकर आनन्द का नाटक कराया, फिर विषाद प्रा पहुँचा और उसने उलटा नाटक करवाया। इस प्रकार कभी हर्ष प्रानन्द करवाता है तो कभी विषाद शोक करवाता है, तब इस संसार के बाह्य लोक के पामर प्राणी क्या करें ? इसमें इनका तो कुछ चलता ही नहीं। (हर्ष या विषाद उन्हें जिस तरफ धकेल दे उसी तरफ आड़े-तिरछे धक्के खाते रहते हैं। गिरते हैं, उठते हैं और फिर गिरते हैं, इनके ऐसे हाल होते ही रहते हैं।) हर्ष और विषाद थोड़े-थोड़े समय के अन्तर से इन्हें नचाते ही रहते हैं अर्थात् विडम्बना देते ही रहते हैं। [३५-३७]
प्रकर्ष-परन्तु, मामा ! उस पथिक यात्रो ने पाकर वासव सेठ के कान में ऐसी क्या गोपनीय बात कही कि जिससे पूरा कुटुम्ब ऐसे विषाद में पड़ गया ?[३८]
विमश-भाई प्रकष ! सुन, इस सेठ के वर्धन नामक इकलौता पुत्र था। उस पर पिता का बहत प्रेम था। वह शरीर से आकर्षक, रूप से रमणीय और तरुणाई से पाछन्न था। सैकड़ों मनौतियों के बाद सेठ के यहाँ उसका जन्म हुआ था। बचपन से ही वह विनय परायण था। एक बार उसने स्वयं अपने परिश्रम से धन कमाने का निश्चय किया। पिता ने बहुत रोका पर एक दिन वह बड़ा सार्थ तैयार कर धन कमाने के लिये देशान्तरों में चला गया। इस बात को वहुत समय व्यतीत हो गया। विदेश में बहुत धन अर्जित कर वह वापस स्वदेश लौटने के लिये निकल पड़ा। लौटते हुए कादम्बरी नामक भयंकर जंगल में उसे धन के अर्थी चोरों ने मार-पीट कर उसका सब धन लूट लिया और सार्थ एवं सम्बन्धियों के साथ उसे बन्दी बना लिया। सेठ के पुत्र वर्धन को पकड़ कर वे क्र रकर्मी चोर उसे अपनी पल्ली (बस्ती) में ले गये । * उससे अधिक धन वसूल करने के लिये ॐ पृष्ठ ४१७
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