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________________ उपमिति-भव-प्रपंच कथा विमर्श-भाई प्रकर्ष ! ऐसा कुछ नहीं है। जितका स्वभाव विकथा (दुर्भाषण) करने, झूठी अफवाहें फैलाने का होता है और जो अपनी वाणी को वश में नही रख सकते उन दुरात्मानों के लिये यह दण्ड कुछ भी नहीं है। हे भद्र ! जो अपनी जिह्वा को इस प्रकार खुली छोड़ देता है और बिना कारण लोगों के दिलों में वैर-विरोध का विष घोलता है तथा बिना प्रयोजन संताप पहुँचाता है, वह तो दण्ड का पात्र है ही । जो सोच समझकर बोलते हैं, जिनकी भाषा सत्य से पूर्ण है, जिनके वचन संसार को प्रानन्द देने वाले हैं, जो योग्य समय पर भी सीमित ही बोलते हैं, जो बुद्धिपूर्वक विचार कर ही बोलते हैं, ऐसे सर्व गुण-सम्पन्न प्राणी भाग्यशाली हैं, महात्मा हैं, प्रशंसनीय हैं, मनस्वो हैं, वन्दनीय हैं, सत्य में दृढ़ विश्वास वाले हैं और संसार में उनकी वाणी अमृत तुल्य है । अन्य जो अपनी जिह्वा को खुली छोड़ देते हैं, वक्त-बेवक्त कुछ भी बक देते हैं उन्हें इस दुमुख जैसा दण्ड मिले तो क्या आश्चर्य है! हे वत्स ! जो प्राणी प्रामाणिक, मधुर और हितकर भाषा (वाणी) बोलता है उसे यह भाषा कष्ट से छुड़ात है, ॐ पर जो उद्धतता से खुले मुह जैसा-तैसा बकता है, उसे (पाँच मुश्कों से) बंधवाने में भी यही कारणभूत होती है । विकथा की कुटेव के कारण दमख ने झठी अफवाह फैलाई जिसके फलस्वरूप उसे इस भव में ऐसा कठोर दण्ड मिला और अभी तो परभव में उसकी दुर्गति होना शेष है। [२-८] हर्ष और विषाद विकथा पर तत्त्व-चर्चा चल ही रही थी, तभी प्रकर्ष ने राज-मार्ग पर एक श्वेत वस्त्रधारी मनुष्य को देखा । उसे जानने के लिये उसने विमर्श से पूछा उत्तर में विमर्श ने कहा- वत्स ! यह रागकेसरी का एक योद्धा है, इसका नाम हर्ष है । इस मानवावास नगर में वासव नामक एक व्यापारी रहता है। अनेक प्रकार के धन-धान्य से पूर्ण इस वासव का यह घर है । बचपन से ही इसकी धनदत्त नामक व्यक्ति से मित्रता हो गई थी। दोनों में प्रगाढ़ स्नेह था, पर किसी कारणवश बाद में वे दोनों अलग हो गये थे । आज बहुत वर्षों के बाद वे मिले हैं। वासव को अपने मित्र से प्रगाढ़ स्नेह था अतः आज धनदत्त से मिलकर वह प्रबल हर्षित हुआ है । इसी कारण से यह हर्ष पाज सेठ के घर में प्रविष्ट हुआ है । वहाँ जाकर वह क्या-क्या करता है, देखो । [६-१३] हर्ष मानवावास में आकर कैसे-कैसे कौतूक करता है, इस जिज्ञासा से प्रकर्ष नेत्र विस्फारित कर देखने लगा । जिस समय धनदत्त और वासव का मिलन हुआ, उसी समय रागकेसरा का योद्धा हर्ष वासव सेठ और उसके कुटुम्ब के शरीर में प्रविष्ट हो गया । परिणामस्वरूप वासव सेठ का घर अानन्द और हर्ष से परिपूर्ण हो गया। अपने मित्र से मिलने की प्रसन्नता में सेठ ने अपने सभी स्वजन बन्धुओं * पृष्ठ ०१५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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