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________________ प्रस्ताव ४ : वसन्तराज और लोलाक्ष ५३६ पुष्पों के समूह से अट्टहास कर रही हो। सिन्दुबार जाति के पूष्प अपने डंठलों से छटकर भूमि पर गिर रहे थे और उनकी आँखों में से निकलता हा पानी ऐसा लग रहा था मानो ऋतु रो रही हो । शुक, सारिका की कलकल मधुर ध्वनि मानो स्फुट वर्णों द्वारा पाठ कर रही हो। माधवी पुष्पों के मकरन्द का मधुपान कर मत्त होकर गुजारव करते हुए भौंरों के झूड की मधुर आवाज मानो रतिक्रिया हेतु उत्कण्ठित अथवा उत्साहित हो गई हो, ऐसी लग रही थी। नर्तन, गान, तर्जन, आकर्षण, प्रगमन, हास्य, रुदन, पठन और उत्कण्ठा इन नौ भावों से युक्त वसन्त ऋतु का आगमन नवग्रह रूप नौ हाथों जैसा लग रहा था। पवन प्रेरित फूलों का सुगन्धित पराग नगर और नगर के बाहर उपवनों (उद्यानों) में भी चारों तरफ फैल रहा था । [१] विमर्श ने कहा-* भाई प्रकर्ष ! तुझे भवचक्र नगर देखने का कौतूहल योग्य समय पर ही हुआ है, क्योंकि इस नगर का सौन्दर्यसार (सुन्दर से सुन्दर रूप) इस वसन्त ऋतु में ही दिखाई देता है। अतः इसकी समग्र सौन्दर्य लीला देखने का यह सर्वोत्तम समय है। देखो, नगर के बाहर के उद्यानों में कौतूहल से ऋतु-सौन्दर्यनिरीक्षण हेतु निकले हुए नगरवासियों की कैसी अवस्था हो रही है ? . लोग सन्तानक वृक्षों के वनों से मोहित हो रहे हैं । बकुल वृक्षों की तरफ दौड़ रहे हैं । विकसित मोगरे की झाड़ियों में विश्राम कर रहे हैं । सिन्दुबार के वृक्षों में लुब्ध हो रहे हैं। पुन्नाग और अशोक वृक्ष के कोमल किशलय पल्लवों को लीला से तो वे तृप्त ही नहीं हो रहे हैं। वे गहन आम्रवनों और चन्दन की वाटिकाओं में भी प्रवेश कर रहे हैं। [१] चैत्र में विकसित अति रमणीय वृक्षों के विस्तार पर भ्रमरों के झुण्ड की तरह इन लोगों की दृष्टि विलास कर रही है। [२] ___ लोग झूला झूलने के आनन्द के साथ अनेक प्रकार की काम-क्रीडाओं के रस में डब रहे हैं और बड़े-बड़े वृक्षों पर होने वाले मधु का पान करते हुए कामक्रीडा में मदमस्त हो रहे हैं। [३] विकसित आम्रवनों में प्रासक्त, कुरबक वृक्षों में लुब्ध और मलय पवन के झकोरों से आनन्दित होकर लोग निरन्तर उद्यानों में ही धूम रहे हैं, वापस घर लौटने का नाम भी नहीं लेते । वत्स ! देखो, सुन्दर पाम्रवृक्षों की पंक्ति के बीच में आये हुए कदम्ब वृक्ष के चारों तरफ नगरवासी मद्य और पासव पी-पिला रहे हैं और विलास कर रहे हैं। सुसंस्कारित मनुष्यों के सन्मुख रत्न निर्मित सुन्दर बहमूल्य पात्र में मद्य रखा जा रहा है । प्रियतमा के मधुर होठों से पवित्र मद्य, पात्र की रत्न किरणों से सुशोभित, सुगन्धित कमल की आकर्षक सुगन्ध से सुवासित और रमणीय पत्नी के मुख कमल द्वारा अर्पित (मुह में कुल्ला भरकर पिलाना), रसना को * पृष्ठ ३६० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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