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उपामति-भव-प्रपंच कथा
प्रकर्ष ! बात यह है कि बाह्य प्रदेश में ऐसे लोग अत्यन्त विरले होते हैं, इसीलिये तो मनीषियों ने कहा है कि :
प्रत्येक पर्वत पर मारणक नहीं मिलते, प्रत्येक हाथी के गण्डस्थल में मोती नहीं होते और प्रत्येक वन में चन्दन के वृक्ष नही होते । ऐसे ही साधु भी सर्वत्र नहीं मिलते !
भाई प्रकर्ष ! तू समझ गया होगा कि मोहराजा पर विजय प्राप्त करने वाले, उसके दर्प का नाश करने वाले प्राणी भी इस संसार में हैं तो अवश्य ही, पर वे अत्यल्प हैं। [६४१-६४६]
__मामा के इस लम्बे भाषण को सुनकर प्रकर्ष फिर गहन विचार में डूब
गया।
२०. भवचक्र नगर के मार्ग पर
[विमर्श से मोह राजा को जोतने वाले महापुरुषों, उनके सद्भाव और विरलता के बारे में सुनकर जिज्ञासु प्रकर्ष उनके सम्बन्ध में विस्तार पूर्वक जानने को आतुर हो गया और कुछ देर सोचकर उसने नया प्रश्न पूछा । ]
मामा ! जिन महात्माओं ने ऐसे बड़े शत्र की सैन्य पर विजय प्राप्त की है अथवा जिन्होंने शत्रुओं की सेना में विक्षेप उत्पन्न कर दिया है, वे कहां रहते हैं ? [६४७]
विमर्श-भाई प्रकर्ष ! सुनो। मैंने किसी प्राप्त (ज्ञानी) पुरुष से पहले कभी सुना था कि सर्व वृत्तान्त (घटना)-परम्परा का प्राधार, आदि-अन्त-रहित और अनेक प्रकार की अद्भुतता का उत्पत्ति स्थान अति विशाल भवचक्र नामक एक नगर है। इस अति विस्तृत नगर में अनेक छोटे-बड़े शहर, ग्राम-मोहल्ले और शृंखलाबद्ध भवनों (हवेलियों) की कई-कई कतारें हैं । इसमें प्रचुरता से देवकुल भी हैं। वहाँ इतने प्रकार की जाति के लोग निवास करते हैं कि उनकी पूर्णतया गिनती भी शक्य नहीं हो सकती। मुझे ऐसा लगता है कि बाह्य प्रदेश के जिन महात्माओं ने अपने वीर्य से इस महामोह राजा आदि शत्रुओं को विक्षिप्त कर रखा है, वे इसी नगर में रहते होंगे।
प्रकर्ष-मामा ! आपने अभी जिस नगर की बात की, वह अन्तरग नगर है बहिरंग नगर?
विमर्श-मात्र एक अपेक्षा से इसे अन्तरंग या बहिरंग नगर नहीं कहा जा सकता, क्योंकि इसमें जैसे अन्तरंग प्राणी रहते है वैसे ही बहिरंग प्राणी भी रहते
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