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उपमिति भव-प्रपंच कथा
अतः मिलन की मधुरता से वियोग की कटुता अधिक असहनीय और ज्वलनशील होती है । वृद्धावस्था सर्व प्राणियों को जीर्णशीर्ण बना देती है औौर प्रान्त में मृत्यु रूपी विकराल पर्वत सब प्राणियों को चूर-चूर कर देता है । [ ५७० -५८३]
भाई प्रकर्ष ! जो प्राणी ऐसी भावना का अभ्यास कर पुन: पुन: इसी चिन्तन में रमण करते हैं, जिनके मन ऐसी भावनाओं (विचारों) से अत्यन्त निर्मल बन गये हैं और जिनका अज्ञानान्धकार नष्ट हो गया है ऐसे प्राणियों को मोह राजा, महामूढता, रागकेसरी, द्व ेषगजेन्द्र, मूढता और अविवेकिता, सब मिलकर भी त्रास नहीं दे सकते, बाधक नहीं बन सकते । इतना ही नहीं, मोह राजा के परिवार के शोक, अरति भय या दुष्टाभिसन्धि आदि भी इनको किसी भी प्रकार से व्यथित नहीं कर सकते । जिसने भावना रूपी शस्त्र से मोह राजा और उनके पुत्र रागकेसरी एवं द्व ेषगजेन्द्र को जीत लिया है उन्हें ये कषाय रूपी १६ बालक या अन्य कोई भी नहीं सता सकता । * अतः ऐसे प्राणी मोह राजा या उसके पुत्रों से कभी सताये नहीं जा सकते । [ ५८४ - ५८७ ]
जो प्राणी सर्वज्ञों द्वारा प्ररूपित श्रागमों का बुद्धिपूर्वक चिन्तन-मनन कर वास्तविक निर्णय पर पहुँच जाते हैं, जो विशुद्ध श्रद्धावान हो जाते हैं, जो अपनी आत्मा पर चिपके हुए पाप-पंक को सद्विचार रूपी जल से धोते रहते हैं, जो आगम ग्रन्थों का बार-बार मनन कर अपने चित्त को स्थिर रखते हैं और जो मूढ कुतीर्थियों के उन्मार्ग- गमन को विचार पूर्वक देखते रहते हैं, ऐसे निर्मल बुद्धिधारक प्राणी पर मोहराजा का मंत्री मिथ्यादर्शन भी अपने स्वभाव से बाधक नहीं बन पाता अर्थात् उसका भी इन पर कुछ वश नहीं चलता । मिथ्यादर्शन की अत्यन्त शक्तिशाली स्त्री कुदृष्टि तो ऐसे प्राणी की शक्ति के विचार से ही दूर भाग जाती है । [५८८-५९१]
ऐसे प्राणी अपनी आत्मा को पूर्णरूपेण मध्यस्थ रखकर स्त्री, शरीर और उसके चपल चित्त के सम्बन्ध में परमार्थ से निम्न चिन्तन करते हैं
हे जीव ! स्त्रियों की रक्त कमल जैसी कुछ श्वेत और कुछ काली दो विशाल श्राँखों को निश्चय ही मांस के दो गोले समझ । रमणीय आकृति वाले मांसल, संश्लिष्ट, स्थानस्थित पतले और लम्बे मुँह के भूषण रूप कानों को लटकती हुई चमगादड़ समझ । स्त्री के जाज्वल्यमान लालिमा से दीपित कपोलों को देखकर तेरा मन अनुरक्त होता है, उन्हें मात्र हड्डियों के ढांचे पर मढा हुआ चमड़ा समझ । तेरी हृदयवल्लभा स्त्री का ललाट (कपाल) भी चमड़े से ढंका हुआ हड्डी का टुकड़ा ही है। ऊंची और लम्बी तथा सुन्दर प्राकार वाली नाक भी चर्मखण्ड ही है । स्त्री के आरक्त पतले अधर जो तुझे मधु से भी मीठे लगते हैं, वे मांस-पेशी के दो टुकड़े मात्र हैं और लार एवं थूक (मल) से अपवित्र हैं । स्त्रियों की खिलखिलाती दन्त पंक्ति जो तुझे मोगरे के फूल जैसी दिखाई देती है और तेरे चित्त को हरण * पृष्ठ ३८२
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