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________________ ५२२ उपमिति-भव-प्रपंच कथा ४. प्रायुष्य-चौथे स्थान पर चार छोटे-बड़े बच्चों से घिरा हुआ जो राजा दिखाई दे रहा है, उसे संसार में लोग आयुष्य के नाम से जानते हैं । (इसके साथ के बच्चों के नाम देवायुष्य, मनुष्यायुष्य, तिर्यञ्चायुष्य और नरकायुष्य हैं ।) * ये बच्चे अपने प्रभाव से प्रत्येक भव में प्राणी के निवास का समय निश्चित करते हैं, अर्थात् किस-किस भव में प्राणी कितने समय तक रहेगा इसका प्रमाण तय करते हैं। [५१२-५१३] ५. नाम-प्रकर्ष ! पाँचवे स्थान पर जो ४२ मनुष्यों से परिवेष्टित महाबली राजा दिखाई दे रहा है, उसे लोग नाम संज्ञा से पहचानते हैं। अपने ४२ अनुचरों के प्रभाव से यह सभी चराचर प्राणियों को इतनी विडम्बनाएं देता है कि जिसका वर्णन भी अशक्य है। तुम देख हो रहे हो कि चतुर्गति रूप संसार में कोई प्राणी देव, कोई मनुष्य, कोई नारकी और कोई पशु के रूप में उत्पन्न होते हैं। कुछ एक, दो, तीन, चार या पांच इन्द्रियों को धारण करते हैं तथा भिन्न-भिन्न शरीरों को धारण करते हैं। इसी के प्रभाव से भिन्न-भिन्न शरोरों में नये-नये पुदगलों से सम्बन्धित होते है। भिन्न-भिन्न अंगोपांग प्राप्त करते हैं । औदारिक आदि शरीर पुद्गलों का संघात (एकत्रित) करने को तत्पर रहते हैं। भिन्न-भिन्न संहनन (हड्डियों के प्राकार) धारण करते हैं। शरीर के भिन्न-भिन्न संस्थान (प्राकृति) धारण करते हैं । रूप, गंध, स्पर्श, रस में एक दूसरे से भिन्न-भिन्न प्रकृति वाले बनते हैं । लघु (हल्के) या गुरु (भारी) बनते हैं । स्वोपघात-परायण अर्थात् शारीरिक या अंगों के दुःख को सहन करने में समर्थ बनते हैं। पराघात-परायण अर्थात् शक्ति शाली से भी विजय प्राप्त करने में समर्थ होते हैं। अनुपूर्वी-पूर्वक अर्थात् अपने अपने इष्ट स्थान पर जन्म धारण करते हैं। पूर्ण श्वासोच्छवास वाले और स्वस्थ शरीर वाले बनते हैं। प्रातप अर्थात् स्वयं शीतल शरीर वाले होने पर भी अन्य प्राणियों को अपनी किरणों से तप्त बना सकते हैं । उद्योत अर्थात् अपने शरीर की शांतिकिरणों से चन्द्र किरण जैसी शान्ति चारों और फैला देते हैं। शुभ-अशुभ विहायोगति के प्रभाव से कोइ प्राणी अति सुन्दर चाल को प्राप्त करता है और कोई ऊंट जैसी बेढंगो चाल को प्राप्त करता हैं । कुछ प्राणो त्रस, कुछ स्थावर (एक इन्द्रिय वाले), कुछ सूक्ष्म, कुछ आँखों से दिखने वाले बादर, कुछ अपनी योग्य पर्याप्ति को पूर्ण किये हए, कुछ अपर्याप्त स्थिति में, कुछ भिन्न-भिन्न शरीर वाले (प्रत्येक), कुछ एक ही शरीर में अनन्त जीव वाले (साधारण), कुछ स्थिर, कुछ अस्थिर, कुछ शुभ, कुछ अशुभ, कुछ सौभाग्यशाली, कुछ दुर्भागी, कुछ सुस्वर (मधुर भाषी), कुछ दुःस्वर (कठोर भाषी), कुछ के वचन लोक में आदेय, ग्राह्य और मनोहर तथा कुछ के स्ववर्ग में अनादेय (अमान्य) होते हैं । कुछ का यश सर्वत्र फैलता है जब कि कुछ का अपयश का ही फैलता है । कुछ के शरीर का गठन सुन्दर होता है । कुछ महात्मा पुरुष इस संसार में तीर्थकर भी बनते हैं जिनके चरण-कमल नमन करते हुए श्रेणिवद्ध देवताओं के के पृष्ठ ३७८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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