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________________ १८. महामोह के मित्र राजा [ महामोह के परिवार, पुत्र, मंत्री और योद्धाओं का वर्णन पूर्ण होने के बाद प्रकर्ष ने उसके मित्र राजा जो वहाँ उपस्थित थे, उनका भी परिचय प्राप्त करने का सोचा। इस विषय में मामा-भाणजे में निम्न बात हई। प्रकर्ष - मामा ! आपने मञ्च पर बैठे लोगों का वर्णन किया वह तो ठीक, पर मञ्च के द्वार के बाहर इस विशाल मण्डप में जो सात राजा बैठे हुए दिखाई देते हैं, जिनके साथ भिन्न-भिन्न छोटा-बड़ा परिवार है और जिनके रूप-गुण भी स्पष्टतया भिन्न-भिन्न दिखाई दे रहे हैं, उनके क्या-क्या नाम हैं ? और क्या-क्या गुण हैं ? वह समझाइये । [५००-५०१] विमर्श-ये सात बड़े राजा यद्यपि महामोह राजा की सैन्य में हैं, किन्तु ये बाहर के हैं और वे महाराजा की सहायता करने आये हुए मित्र राजा हैं। [५०२] १. ज्ञानावरग-इनमें से जो सब से प्रथम है और जो पाँच मनुष्यों के साथ है वह ज्ञानसंवरण नामक बहुत प्रसिद्ध राजा है । इसमें इतनी शक्ति है कि वह स्वयं तो यहाँ रहता है, फिर भी अपनी शक्ति से बाह्य प्रदेश के प्राणियों को ज्ञान रूपी प्रकाश से रहित कर एक दम अन्धा बना देता है अर्थात् लोगों की समझ, विचार-शक्ति और दीर्घदृष्टि का हरण कर लेता है । यह राजा गहन अज्ञानान्धकार से लोगों को असमञ्जस में डाल देता है, इसीलिये शिष्ट लोग इसे मोह के उपनाम से भी जानते हैं। इसके साथ बैठे पाँच पुरुषों के नाम हैं-मतिज्ञानावरण, श्रुतज्ञानावरण, अवधिज्ञानावरण, मनःपर्यवज्ञानावरण और केवलज्ञानावरण । [५०३-५०५] २. दर्शनावरण-दूसरे स्थान पर जो राजा चार पुरुषों और पाँच स्त्रियों से घिरा बैठा है वह दर्शनावरण के नाम से महीतल में प्रतिष्ठित है । (चार पुरुषों के नाम चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण, अवधिदर्शनावरण और केवलदर्शनावरण हैं।) इसके साथ जो पाँच सुन्दर स्त्रियाँ दिखाई दे रही हैं (उनके नाम निद्रा, निद्रानिद्रा, प्रचला, प्रचलाप्रचला और स्त्याद्धि है।। ये अपनी शक्ति से सारे संसार को निद्रा में घर्णित कर देती हैं और इसके साथ खड़े ये चार पुरुष दुनिया को नितांत अन्धा बना देते हैं। [५०६-५०८] ३. वेदनीय-तीसरे स्थान पर जो दो पुरुषों से युक्त राजा दिखाई दे रहा है, उस विख्यात पुरुषत्व वाले राजा का नाम वेदनीय है । इनमें से एक पुरुष साता के नाम से प्रसिद्ध है जो देव, मनुष्य प्रादि सब को अनेक प्रकार के प्रानन्द प्राप्त कराता है और त्रैलोक्य को मस्ती से हर्षित कर देता है । उसके साथ ही जो दूसरा पुरुष दिखाई दे रहा है वह असाता के नाम से प्रसिद्ध है। यह पुरुष जगत् को विविध प्रकार के संताप पौर दुःख देता है । [५०६-५११] Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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