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प्रस्ताव ४ : पाँच मनुष्य
५१३ से बहिरंग प्रदेश के लोगों को बिना कारण ही वाचाल बनाता है। कोई निमित्त को प्राप्त कर या अकारण ही जब यह बहादुर योद्धा के समान अपनी शक्ति प्राणी में प्रकट करता है तब प्राणी सकारण या अकारण ही हा ! हा ! हा ! कर कहकहैं लगाता है, अट्टहास करने लगता है। हँसते हुए उसका मुह इतना विकृत हो जाता है कि वह शिष्ट पुरुषों द्वारा निन्दनीय बन जाता है । यों मुखवाद्य को बजाकर प्राणी लघूता को प्राप्त करता है। अकारण ही वह लोगों को शकाशील बनाता है। परस्पर वैर उत्पन्न करता है और स्पष्टत: भ्रान्ति पैदा करता है। अपने हास्य के स्वभाव से ऐसा प्राणी मक्खी मच्छर जैसे क्षुद्र प्राणियों का भी उपघात कर बैठता है और कौतुकता के कारण व अकारण हो मनुष्यों को त्रस्त करता है। कभी-कभी उसकी यह प्रवृत्ति दूसरे प्राणियों के लिये प्राणघातक भी बन जातो है। यह हास्य ऐसी अनेक प्रकार की विचित्रताएं इस लोक में पैदा करता है और परलोक में दारुण कर्मबन्ध के परिणाम उपार्जित करवाता है। इसकी एक तुच्छता नामक हितकारिणी पत्नी है जो इसके शरीर में ही रहती है और जिसे गम्भीर-चिन्तक मनुष्य ही समझ सकते हैं । हे वत्स ! यह स्त्री अकारण ही तुच्छ लोगों में अपनी इच्छानुसार प्रतिदिन तुच्छता जागृत करती है, प्रेरित करती है और उसे बढाती है । कहा भी है :
यतो गम्भीरचित्तानां, निमित्ते सुमहत्यपि । मुखे विकारमात्रं स्यान्न हास्यं बहुदोषलम् ।।
हँसने का कैसा भी गम्भीर कारण क्यों न हो, गम्भीर पुरुष मुह में ही मुस्कराते हैं, परन्तु मुह बिगाड़ कर खिल-खिलाकर कभी नहीं हँसते। [३८०-३८९ ।]
२. प्रति- इनमें काले रंग की और बीभत्स (भद्दी) दिखाई देने वाली स्त्री संसार में परति के नाम से प्रसिद्ध है । यह किसी भी कारण को लेकर उत्साहित हो जाती है और बहिरंग प्राणियों को असहनीय मानसिक दुःख देती है ।
[३६०-३६१] ३. भय--वह जो दूसरा कांपता हुमा पुरुष दृष्टिगोचर हो रहा है वह भय के नाम से प्रख्यात है जो महादुःखदायी है । भाई ! वह जब-जब चित्तवृत्ति अटवी में लीलापूर्वक विचरण करता है तब-तब बहिरंग प्रदेश के प्राणियों को एक दम डरपोक बना देता है । इसके प्रभाव से प्राणी (१) अन्य मनुष्य को देखकर भयभीत होते हैं, (२) पशुओं को देखकर काँपने लगते हैं, (३) धन के खो जाने या लुट जाने या हानि की कल्पना मात्र से पागल बनकर भागने लगते हैं, (४,५) अग्नि, बाढ, भूकम्प आदि आकस्मिक कारणों के विचार मात्र से विह्वल होकर अश्रुपूरित नेत्रों से बोल उठते हैं कि अब क्या होगा? कैसे जीवित रहेंगे ? क्या हाल
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