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प्रस्ताव ४ : महामूढता, मिथ्यादर्शन, कुदृष्टि
५०५ भेद को नहीं जानते । ये तो मात्र खाने, पीने, सोने और काम-भोग में पशु के समान अपना समय व्यतीत करते हैं। * अपार संसार-समुद्र के तल में पड़े हुए ऐसे निश्चेष्ट प्राणियों को ऊपर लाने का उपाय क्या और कैसे हो ? समुद्र में से निकालने वाले उत्तम धार्मिक आचरणों को तो उसने पूर्णरूप से नष्ट कर रखा है । भाई प्रकर्ष ! मिथ्यादर्शन निर्मित विपर्यास सिंहासन इस रूप में भी संसार में दिखाई देता है। जिन नियमों और अनुष्ठानों में प्रशमानन्द रूप शान्ति का साम्राज्य समाया हुआ है और जो सारभूत है ऐसे नियमों में भी यह विषय-परवश मूढ प्राणी दुःख ही मानता है । जब कि जो विषय-भोग अत्यन्त दुःख से भरपूर और तथा थोड़े समय में नष्ट होने वाले हैं उनमें यह विषयाभिभूत प्राणी सुख की कल्पना करता है, सुख मानता है । इस प्रकार यह भूवन प्रसिद्ध, महाबली मिथ्यादर्शन सेनापति बाह्य लोक के प्राणियों के चित्त में ऐसे-ऐसे अनेक प्रकार के अनर्थ उत्पन्न करता है।
[२६८-२७५] हे प्रकर्ष ! महामोह नरेन्द्र के प्रधान सेनापति मिथ्यादर्शन के माहात्म्या का मैंने संक्षेप में वर्णन कर तुझे बताया। [२७६।
मिथ्यादर्शन के सन्दर्भ में उपरोक्त विवेचन सुनकर प्रकर्ष बहुत प्रसन्न हुआ, फिर उसने अपना दांया हाथ उठाकर मामा से कहा-मामा! आपने विस्तार पूर्वक जो वर्णन किया वह तो मैं अच्छी तरह समझ गया। किन्तु, सेनापति के आधे आसन पर जो सुन्दर स्त्री बैठी है वह कौन है ? [२७७-२७८] कुदृष्टि
विमर्श-भाई ! अपने पति के समान ही बल और साहस को धारण करने वाली यह मिथ्यादर्शन की पत्नी कुदृष्टि के नाम से प्रसिद्ध है । हे भद्र ! बहिरंग लोक में जो कई पाखण्डी अनेक प्रकार के असत् मार्ग चलाने वाले दृष्टिगोचर हैं उन सब का कारण यह कुदृष्टि हो है । हे भद्र ! उन पाखण्डियों के नामों का मैं वर्णन करता हूँ। इनके देव आदि भिन्न-भिन्न होने से ये एक दूसरे से भिन्न लगते हैं।
[२७६-२८१] ___शाक्य, त्रिदण्डी, शैव, गौतम, चरक, सामानिक, सामपरा, वैदिक, धार्मिक, प्राजीवक, शुद्ध, विद्य द्दन्त, चुचुण, माहेन्द्र, चारिक, धूम, बद्धवेश, खुखुक, उल्का, पाशुपत, कौल, कणाद, चर्मखण्ड, सयोगी, उलूक, गोदेह, यज्ञतापस, घोष-पाशुपत, कन्दछेदी, दिगम्बर, कामर्दक, कालमुख, पारिणलेह, त्रैराशिक, कापालिक, क्रियावादी, गोवती, मृगचारो, लोकायत, शंखधामो, सिद्धवादी, कुलंतप, तापस, गिरिरोहो, शुचिवादी, राजपिण्डी, ससारमोचक, सर्वावस्थ, अज्ञानवादी, श्वेतभिक्षुक, कुमारव्रती, शरीरशत्रु, उत्कन्द, चक्रवाल, पु, हस्तितापस, * चित्तदेव, बिलवासो, मैथनचारी, अम्बर, असिधारी, माठरपुत्र, चन्द्रोद्गमिक, उदकमृत्तिक, एकैकस्थाली, मखक, पक्षापक्षी, गजध्वजी, उलूकपक्ष, मातृभक्त (देवी-भक्त), और * पृष्ठ ३६६
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