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________________ ५०० उपमिति-भव-प्रपंच कथा उपामात जब कि जीव, अजीव, पुण्य, पाप, संवर, निर्जरा, आस्रव, बन्ध और मोक्ष जो वास्तविक नौ तत्त्व हैं, * जिनकी प्रतीति से सिद्धि होती है और जो प्रमारणों द्वारा प्रतिष्ठित हैं उन्हें यह दारुण व्यक्ति मिथ्यादर्शन छुपा देता है । अर्थात् इसके वश में पड़े हुए प्राणियों को यह प्रमाणसिद्ध सत्य तत्त्वों को दृष्टि से अोझल कर देता है, पहचानने नहीं देता। [१६५-१६६] कुगुरु को सुगुरु : सुगुरु को कुगुरु साधु-वेष धारण करके भी घर में रहने वाले, ललनाओं के अंगोंपांगों का मर्दन करने वाले, प्रारिगयों की घात (हिंसा) करने वाले, असत्य-परायण, पापिष्ठ, प्रतिज्ञाभंग करने वाले, धन-धान्य आदि का परिग्रह करने में रचे-पचे हुए, स्वादिष्ट भोजन का निर्माण करवाकर सर्वदा भक्षण करने वाले, मद्यपान करने वाले, परस्त्रियों के साथ गमन करने वाले, धर्म-मार्ग को दूषित करने वाले, तप्त लोह पिण्ड के समान क्रोधमूर्ति होते हुए भी यति स्वरूप के धारक-आदि-आदि अधर्माचरण करने वालों को भी यह मिथ्यादर्शन सत्पात्र (सद्गुरु) बनाकर उनका योग्य सन्मान करने और उनका उपदेश सुनने की बुद्धि जागृत करता है। जब कि सत्य ज्ञान के ज्ञाता, विशुद्ध ध्यान में रत, शुद्ध चारित्र का पालन करने वाले, उग्र तपस्या करने वाले, सन्मार्ग में अपनी शक्ति का उपयोग करने वाले, गण-रत्नों को धारण करने वाले, 'महान् धैर्यवान, चलते-फिरते कल्पवृक्ष के समान, दानदाता को संसार-समुद्र से पार उतारने वाले, अचिन्तनीय वस्तुओं से भरे हुए जहाज के समान, (संसार समुद्र से) उस पार पहुंचाने वाले-ऐसे निर्मलचित्त वाले महापुरुषों के प्रति यह जड़ात्मा मिथ्यादर्शन अपात्र (कुगुरु) को बुद्धि उत्पन्न करता है। [१६७-२०२] असाधु को साधु : साधु को असाधु साधु-वेश धारण कर सौभाग्य के लिये भस्म देने वाले, गारुड़ी विद्या या जाद का प्रयोग करने वाले, मन्त्रों का उपयोग करने वाले, इन्द्रजाल दिखलाने वाले, स्वर्ण आदि रसायन-सिद्ध करने वाले, विष उतारने वाले, तन्त्रों का प्रयोग करने वाले, अंजन लगाकर अदृश्य होने वाले, आश्चर्योत्पादक कार्य करने वाले, उत्पात, अन्तरिक्ष, दिव्य, अंग, स्वर, लक्षण, व्यंजन और भौम अष्टांग निमित्त के माध्यम से शुभाशुभ फल बतलाने वाले, उच्चाटन आदि से शत्रु का नाश करने वाले, टोनेटोटके करने वाले, आयुर्वेदीय औषध देने वाले, सन्तति के शुभाशुभ फल बतलाने बाले, जन्मपत्री तैयार करने वाले, ज्योतिष गणना से वर्ष-फल बताने वाले, यौगिक चर्ण और यौगिक लेप आदि तैयार करने वाले, दूषित शास्त्रों के माध्यम से विचित्र एवं आश्चर्यजनक कार्य करने वाले, अन्य प्राणियों का नाश करने वाले, धूर्तता की ध्वजा फहराने वाले, ऐसे-ऐसे पाप परायण व्यक्ति निःशंक होकर अधम एवं तुच्छ * पृष्ठ ३६१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001725
Book TitleUpmiti Bhav Prakasha Katha Part 1 and 2
Original Sutra AuthorSiddharshi Gani
AuthorVinaysagar
PublisherRajasthan Prakrit Bharti Sansthan Jaipur
Publication Year1985
Total Pages1222
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Literature, & Story
File Size23 MB
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